पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३००

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२८१ +marn + ++ - 11- MAdina..ONI InInter++++14mitertainandantarrernmMI ... भक्तिसुधास्वाद तिलक ..................२८१ धाइ चाइ पाइ लपटाइ गए, बड़ो परताप यह निशि दिन गाइये ॥ वात्तिक तिलक । श्रीगुरुजी इनको साथ लेके. (इनकी भक्तिमहिमा को प्रगट करने के निमित्त,) श्रीगंगास्नान को चले, श्रीगंगाजल के भीतर गए और अत्यन्त प्रेम में पगके शिष्य को (इनको) आज्ञा की कि "मेरा अंगोछा शीघ्र लाके दो।" ये बड़ेही अपार शोच विचार में पड़े कि इत तो श्रीगंगाजी उत श्रीगुरुजी और दोनों ही में इनकी भावभक्ति अपूर्व ठहरी, अपार असमंजस में पड़े। इतने में तुरन्त ही श्रीगंगाजी इनको प्रगट देख पड़ी और कृपा करके बोली कि “यह देखो तुम्हारे पास से गुरुजी के समीप तक कमल के पत्ते प्रगट हो गए, तुम निस्सन्देह इन्हीं पत्तों ही पर पाँव रखते हुए बेखटके चले श्रायो।" ___ आज्ञानुसार ये अधर पर अर्थात् उन्ही कमलपत्रों पर पाँव रखते हुए दौड़े और वहाँ पहुँचके श्रीगुरुकरकंज में अंगोबा दिया, और आपने श्रानन्दपूर्वक उसको लिया यह परिचय, यह आश्चर्य, यह गुरुभक्ति- माहात्म्य, यह श्रीगंगाजी की कृपा ! देखने के लिये तट पर भारी भीड़ एकट्ठी हो गई । ज्यों ही ये तीर पर लौटे, लोग दौड़ दौड़ के इनके चरणों में लपट-लपट गए,और इस महत् प्रताप को उस दिन से सब लोग दिन रात गान करते रहे। (१२) श्री १०८ रामानन्दस्वामी। श्रीसम्प्रदाय (१५१) छप्पय । (६९२) श्रीरामानुज पद्धति प्रताप अवनि अमृत कै अनु सस्यो।"देवाचारज"द्वितीय* महामहिमा"हरियानद।" "द्वितीय" =अर्थात्, प्रथम महामहिमायुक्त श्री ६ देवाचार्य (देवाधिपाचार्य), और वितोय महामहिमा से युक्त श्री १०८ हरियानन्द स्वामी ।