पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३०१

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-- . - - - - - --- - .. -1-1 - 4 4 - J a n- श्रीभक्तमाल सटीक। तस्य "राघवानन्द" भए भक्तन को मानद ॥ पत्रावलम्ब पृथिवी करी* व काशी स्थाई। चारिबरन आश्रम सबही को भक्ति दृढ़ाई॥ तिनके रामानंद" प्रगट, विश्व मंगल जिन्ह वपु धस्यो । श्रीरामानुज पद्धति प्रताप अवनि अमृत कै अनुसखो॥ ३५ ॥ (१७६) (१५) छप्पय । (६९१) श्रीरामानन्द रघुनाथ ज्यों दुतिय सेतु जग तरन कियो॥ अनन्तानन्द, कबीर, सुखां, सुरसुरा, पद्मावति नरहरि। पीपा,भावानन्द, रैदास, धनों, सेन, सुरसुर की घरहरि ।। औरौ शिष्य प्रशिष्य एकते एक उजागर। विश्वमंगल आधार सर्वानंद दशधा के आगर। बहुत काल बपुधारि कै, प्रणत जनन कौं पार दियो। श्रीरामा- नन्दरघुनाथज्योंदुतिय सेतु जगतरन कियो॥३६॥(१७८) वात्तिक तिलक। अनन्त श्रीरामानुज स्वामी के संप्रदाय का अमृतरूपी प्रताप भू. मंडल में शिष्य पशिष्यादि द्वारा, जीवों के मरणादि दुःखों को नाश करता हुआ अतिशय फैल गया और फैलता ही जाता है। कोई कोई लिखते हैं कि स्वामी श्रीगमानन्दजी महाराज इस संसार को त्यागसंवत् १५.० ५. में श्रीसाफेत परधाम गये १४८ (148) वर्ष यहाँ विराजे थे। "वपुधरयो"-देह घरी) "करीब" करीव, समीप करके । "करी" -क्रिया, "व" और अवतीर्ण हुए, प्रगटे, अवतार लिया ।