पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३०२

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२८३ भक्तिसूधास्वाद तिलक। "अथ श्रीराममन्त्रराज परम्परा" १. सर्वेश्वर श्रीरामचन्द्रजी १२. श्रीरामेश्वराचार्यजी २. श्रीजगजननी जानकीजी १३. श्रीदारानन्दजी ३. श्रीहनुमानजी १४.श्रीदेवानन्दजी ४. श्रीब्रह्माजी १५. श्रीश्यामानन्दजी ५, श्रीवशिष्ठजी १६. श्रीश्रुतानन्दजी ६.श्रीपराशरजी १७. श्रीचिदानन्दजी ७.श्रीव्यासजी १८. श्रीपूर्णानन्दजी ८,श्रीशुकदेवजी १६. श्रीश्रियानन्दजी ६. श्रीपुरुषोत्तमाचार्यजी २०. श्रीहर्यानन्दजी १०. श्रीगंगाधराचार्यजी २१. श्रीराघवानन्दजी ११.श्रीसदाचार्यजी २२. स्वामी श्रीरामानन्दजी (श्लोक ) नम आचार्य्यवर्याय रामान्दाय धीमते। मोक्षमार्गप्रकाशाय चतुर्वर्गप्रदाय च ॥३॥ महामहिमा से युक्त श्रीहर्यानन्दाचार्य स्वामी उनके शिष्य समस्त भगवद्भक्तों के मान देनेवाले श्री १०८ राघवानन्दाचार्ययजी जो, हिले, वैष्णवों के वृन्द साथ लेके, भरतखण्ड की संपूर्ण पृथ्वी में विचर के, भगवत् विमुखों को जीत, अपने विजयपत्र के अवलम्ब में भूमि को करके, काशीजी में स्थिर विराजमान हुए, और चारों वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र ) तथा चारों आश्रमी (ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ तपस्वी, संन्यासी)इन सबों को उत्तम उपदेश देकर श्री रामभक्ति में दृढ़ स्थित कर दिया। इन्हीं श्रीराघवानन्द स्वामीजी के शिष्य, साक्षात् श्रीरामराघव जी आपही, श्रीरामानन्दरूप से प्रगट हुए, कि जो विश्व (संसार) भर के मङ्गल की मूर्ति ही हैं, अर्थात् सब संसार के जीवों का जिनने मङ्गल किया।