पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३१०

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२९१ ..- 1 1 -..-. Porn... ...- 4 . + .. भक्तिसुधास्वाद तिलक । .......... दो."स्वामिहि सेवा वश किये, रामानन्द उदार। दै सरवस गुरु रामपुर, गवने दशएँ द्वार॥" . आपकी गुरुसेवा, भजन, साधुगुण, तेज, प्रताप, देख और श्रीप्रभु के अवतार जान, अपनी सब भजन-संपत्ति सौंपके, अपनी इच्छा ही से दशम द्वार से गमन करके कृपालु श्रीराघवानन्दजी श्रीरामधाम में प्राप्त हुए। तव सूर्य्यरूपी श्रीरामानन्दजी काशीरूप आकाश में प्रकाशमान, और पूर्व छप्पय विषे कथित श्रीअनन्तानन्दादि आपके शिष्य हुए। वेई तेज के स्थान कला शोभित हुई । इस प्रकार श्रीरामानन्द सूर्य ने प्रकट होके कलियुग की कुचालरात्रि को नाश किया तथा प्रबल पा- खण्डरूपी उस रात्रि के अन्धकार को भी नाश किया, तब अभक्त भग- वत्-विमुख छुप रहे। और आपके शिष्य पशिष्य भागवत वेषधारी वैष्णव धूप (घाम) प्रकाश के सरीखा चारों धामों में स्थान स्थान में भर गए एवं महात्मा सन्तसमूह कमलों के सम विकाशमान हुए। ऐसे सूर्यरूपी श्रीरामा- नन्दस्वामी उदित हुए। फवित्त । "मन्द कलिकाल के कुचाल ते अमन्दपाप फैले पंथ निन्द वेद भक्तिह निकन्द के। देखे रघुनन्द जब सबै जन्तु बन्द दले लीन्हें अवतार तब दायक अनन्द के ॥ सेतु विसतारे मंत्र तारकप्रचारे किए जीव भवपारे देहधारक स्वच्छन्द के । सन्तसिन्ध- चन्द ऐसे करुणा के कंद "रसरङ्गमणि" बंद पद स्वामी रामानन्द के रामानन्द स्वामी से भए न कोई और होने जिनको विदित तीनो लोक में प्रताप हैं। काम क्रोध लोभ मोह मत्सरादि सुण्डादण्ड मर्दन को केशरी ज्यौ राजे करिदाप हैं ।। विमुख पाखंडी आन धर्मी तमतोम रवि, अभिमान सागर को कुंभन से आप हैं। रामभक्ति शालिक्षेत्र पोपिबे को वारिद से आश्रित प्रपनन के एक माई बाप है।॥२॥ चौपाई। "छायो लोक प्रताप प्रकाशा । कलिकरतब पातक तम नाशा घोर कुपथ चोर बिलखाने । कुमुद कर्मकांडी सकुचाने ।। रामभक्ति सरसोरह वृन्दा । रवि लखि भे विकसितसानन्दा ॥"