पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३११

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२९२ श्रीभक्तमाल सटीक । + 1400 m m .in... ... . more चौपाई। "सहित तेरहो शिष्य अरामी। राजत श्रीरामानंद स्वामी ।। शिष्य शिष्य उपशिष्य समेता । शोभित प्रजित कृपानिकेता।। नित प्रति रामकथा सतसंगा। कहत वहत जनु दूसरि गंगा ।। तारत जीवन मरत महेश । सतनु तरत स्वामी उपदेशू॥" "अस प्रभु भगवत रामानन्दा । परम धरम तनु जनु सुखकन्दा।। हिय विचार किय कृपानिकेतू । महि दिगविजय करन के हेतू ।। संग शिष्य परशिष्य अनन्ता । तिमि तिहुँ सम्प्रदाइ बहु संता ।। आगे फहरत ध्वजा निशाना । तेहि पर बैठ बीर हनुमाना। जै जै सियाराम' धनि छाई । चले विजय कर शंख बजाई ।।" दो० खंडन किये कुपन्थ ये, यथा योग द वंड ।। सतमारग आने तिनहि, करि उपदेश अखड। चौपाई। "चारिव धरण आश्रम माहीं। कीन्हे "रामभक्त" सबकाहीं।। रासमन्त्र मन्त्रार्थ विधाना । यथायोग दीम्हें मतिवाना॥ यहि विधि करि दिगविजयउदंडा। थापे 'रघपति भक्ति अखंडा'। प्रभु जेहि हेतु लिये अवतारा । सत्यसन्ध सोइ किये प्रचारा ।। रामानन्द प्रताप अपारा । को कवि लहै कथन करिपारा॥ छ० "भारी प्रभाव प्रताप रामानन्द को, को कहि सके ? जो परम प्रभु अवतार शारद बदत जस जाको जकै ।।" "श्रीरामरूप अनूप रामानन्द स्वामी हैं सदा । शुचि ज्ञानदायक ध्यान लायक हरन मल मायामदा ।।" सोरठा। "शारदशशी समान, कीरति रामानन्द की। पावन पुण्य महान, नाशनि पातक बन्द की ॥ परमाचार्य स्वामी श्रीरामानन्दजी का यह चरित "श्रीअगस्त्यसंहिता भविष्योत्तर- खण्ड" में पाँच अध्याय से वर्णित है सो श्रीकाशी कब्जगली के पास "हजारीलाल गणेशप्रसाद" के यहाँ मिलता है. सूर्यप्रभाकरशिलायंत्र सं० १९३५ में छपा । उसी से भाषा में "श्रीरामानन्दयशावली" नामक ग्रन्थ बना है। श्रीरामअनन्यसखा, परमहंस श्री सीताशरणजी महाराज ने, श्वीपांच रामरसरङ्गमणिजी महाराज से "श्रीरामा- नन्दयशावली" के नाम से भाषा प्रबन्ध कराके छपवाया है, उससे, तथा मुंशी श्री ६