पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३१३

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श्रीभक्तमाल सटीक । "वर्ष सप्तशत" जो लिखा है (श्रीरघुराजसिंहजी ने,) सो न जानें कैसे? १३५६ से ७०० लो २०५६ में होंगे; यह अभी भी सवत् १९६२ ही है। स्वामीजी को अस्त- धर्धान हुए सैकड़ों वर्ष बीत चुके । न जानूं उनने ७०० किस अभिप्राय से लिखा? इस श्लोक से तो १११ ही ( १४६०-१३५६-१११ ) वर्ष स्पष्ट है । इसके अतिरिक्त दो और ने भी "१०० वर्ष से ऊपर" लिखा है।। इतिहासों से ( "१४०० ईसवी" ) संवत १४५७ प्रगट है। वह भी इसके समीप मिलता है ।। (१) श्रीअगस्त्यसंहिता भविष्योत्तरखण्ड की कथा तो प्रसिद्ध है ही। (२) ऐसाभी लिखा है कि "एक कल्प मे कलि ४४४७ की भाद्रकृष्णाष्टमी को,श्री १०६ रामानन्द स्वामी श्रीकपिलदेव भगवान् के अवतार, गायवाश्रम के समीप गौड़ ब्राह्मण के पुत्र हो प्रगट हुए; १०८ वर्ष की अवस्था में कलि के ४५५५ वर्ष गत होने पर परधाम को सिधारे ।।" (३) और भविष्यपुराण के "तृतीय प्रतिसर्ग पर्व" के चतुर्थखण्ड में लिखा है कि आप श्रीसूर्य भगवान् के अवतार, 'देवल' मुनि के पुत्र होंगे---- भविष्यपुराण में ये (छः) श्लोक आपके यश में हैं- "इति श्रुत्वा स्वर्गार्था वैशाख्या देवराट् स्वयम् । प्रत्यक्ष भास्करं देवं ददर्श सहितं सुरैः ॥ १ ॥ भक्किनमान्सुरान्दृष्ट्वा भगवास्तिमिरापहः । उपाच वचनं रम्यं देवकार्य्यपरं शुभम् ॥ २॥ ममांशात्तनयो भूमी भविष्यति सुरोत्तम । सूत उवाच-इत्युक्त्वास्वस्य विम्बस्य तेजोराशिं समन्ततः ॥३॥ समुत्पाद्य कृतं काश्यां रामानन्दस्ततोऽभवत् । देवलस्य च विमस्य कान्यकुब्जस्य वै सुतः ॥ ४ ॥ बाल्यालमृतिसज्ञानी रामनामपरायणः । पित्रा मात्रा यदा त्यस्तो राघवं शरणं गतः॥ ५॥ तदातु भगवान्साक्षाचतुर्दशकलो हरिः । सीतापतिस्तद्ध दये निवासं कृतवान्मुदा ॥ ६ ॥ इति ते कथितं विष मित्रदेवांशतो यथा । रामानन्दस्तु बलवान हरिभक्तेश्च संभवः ॥७॥ इति भविष्य पुराणे तृतीये प्रतिसर्गपर्वणि सप्तमाध्याये श्लोकाः॥