पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३१६

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२९७ ++oneindeature- + +++MAMAN भक्तिसुधास्वाद तिलके। (श्रीभागवत ) कह रहे थे, कथा में “यमलार्जुन” का प्रसंग था, ज्योंही अध्याय पूरा हुआ कि उसी क्षण पास का वृक्ष, किसी प्रत्यक्ष- कारण के विनाही, अकस्मात् गिर पड़ा अडसधाम और साथ ही आश्चर्यमय यह घटना भी हुई कि एक विमान और एक पुरुष सब सन्तों ने देखा, उस मनुष्य ने आपके चरणसरोज की वन्दना करके कहा कि मैं बड़ा ही पापी, नरक से हो. पाके, यही वृक्ष होके यहाँ था, इस समय श्रीहरिकथा के श्रवण से मैं निष्पाप हो, श्रीभगवतकपा से इस विमान पर चढ़ परधाम को जाता हूँ, यह आप के ही दर्शनों का प्रभाव है। (१४)श्रीहरियानन्द आचार्य स्वामी। हरिश्रानन्द में सदा छके हुए श्री ६ हरियानन्दजी ने एक समय पुरुषोत्तमपुरी में जा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को रथारूढ़ श्रीजगन्नाथजी के दर्शन किये, चलते चलते रथ रुक गया था, खींचे ठेले से हिलता बढ़ता न था। आपने पुकार के कहा कि “सब कोई रथ को छोड़ दो, श्रीजगदीश कृपा से स्थ प्रापही चलेगा" ऐसा ही हुश्रा, सौ पगतक रथ प्रापही दौड़ागया। जयजयकार ध्वनि छा गई। ऐसे ऐसे इतिहास आप के यश के अनेक हैं। छप्पय । "चरणकमल बन्दी कृपालु हरियानंद स्वामी। सर्वस सीताराम रहसि दशधा अनुगामी ॥ बालमीकि वर शुद्ध सत्त्व माधुर्य रसालय । दरसीरहसि अनादिपूर्व रसिकन की चालय ।। नित सदाचार मैं रसिकता अति अद्भुतगति जानिये। जानकिवल्लभकृपा लहि शिषपति शिष्य वखानिये॥" (श्रीयुगलप्रिया, रसिकभक्तमाल) (१५) आचार्य स्वामी श्री १०८ राघवानन्दजी। । कुछ तो आप का प्रताप, स्वामी अनन्त श्रीरामानन्दजी के चरित