पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३२४

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+M BERevinim + + भक्तिसुधास्वाद तिलक । अति अनुचित लगता है, अतः इस कर्म को त्याग दीजिये।” ऐसा कहकर बहुत जोति, भूमि जोतने वोने खेती करने को, (अथवा) बहुत जोतियुक्त दाम सुवर्ण तथा और द्रव्य देकर फिर कहा कि "श्रीसीता- रामजी के चरणों में मन लगाके भजन कीजिये। वह वैष्णव-वेष-धारी उस कर्म को तजकर श्रीरामजी में लग गया और सन्तों की सेवा सम्मान करने लगा। भक्तराज की दया की जय, श्रीपयहारीजी महाराज के प्रभाव की जय ॥ ___ उस राजा के वंश का राजकुमार ("नृपसुत") श्रीप्रियादासजी महाराज के समय (संवत् १७६९ ) पर्यन्त विराजमान था । । पुनः श्रीपयहारीजी ने गलता तथा आमेर के कनफटे वैष्पवद्रोही योगियों को अपनी सिद्धता से उस मठ से निकाला- रात भर रहने के लिये उस जगह आप गये थे, परन्तु उन विमुख योगियों ने कहा “यहाँ से उठ जाव" तब आपने अपनी धूनी को भाग कपड़े में बाँध ली और दूसरी ठौर जा बैठे, वहीं आग कपड़े में से रख दी। कपड़े कान जलना देखके योगियों का महंत वाघ वनकर आप पर डपटा। आपने कहा, "तू कैसा गधा है"तुरन्त वह गधा हो गया और अपने वल से मनुष्य न बन सका । और सब योगियों के कान के मुद्रे कानों से निकल २ आपके पास पहुँचके ढरे लग गये। आमेर का राजा पृथ्वीराज अापकी सेवा में जाकर बड़ी मार्थना करने लगा, तब आपने गधे को फिर आदमी बनाके आज्ञा दी कि इस जगह को तुम सब छोड़के अलग रहो और लकड़ियाँ इस धूनी में पहुँचाया करो। उन सबों ने स्वीकार किया और राजा पृथ्वीराज भी श्रीपय- हारीजी का चेला हो गया, और तभी से गलता आपकी प्रसिद्ध गादी हुई। वन में गऊ पाप से आप दूध श्रीपयहारीजी को देती थीं। आपने आमेर की एक गणिका को भी चेताया था जिसने परमगति