पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३२५

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श्रीभक्तमाल सटीक। ........14 . 1 0 P...HMMAims +NHMAA (१६) श्रीयोगानन्दजी। आप श्रीअनन्तानन्दजी के शिष्य थे। और महात्माओं ने आपको सांख्यशाख के कर्ता श्रीकपिल भगवान का अवतार भी लिखा है, इसी से श्राप योगानन्द नाम से प्रख्यात हुए। (२०) श्रीगयेशजी। श्रीगयेशजी श्रीअनन्तानन्दजी के कृपापात्र अर्थात् श्रीरामानन्द स्वामीजी के पौत्र शिष्य थे। आपकी भक्ति की प्रशंसा किससे हो सकती है। (२१) श्रीकर्मचन्दजी। श्रीअनन्तानन्दजी महाराज के शिष्य श्रीकर्मचंदजी बड़े नामा- नुरागी साधुसेवी तथा गुरुनिष्ठ थे॥ (२२) श्रीअल्हजी। श्रीअल्हंजी श्रीअनन्तानन्दजी के शिष्य थे। श्रापकी कथा आँप की डाल झुक पाने की, ५४ वें मूल २४६ वें कवित्त, में भागे आवेगी। (२३) श्रीसारीरामदासजी। कोई “सारीरामदासजी" एक ही नाम लिखते हैं, और किसी ने “सारीदास" और "रामदास" दो व्यक्ति कहे हैं, अस्तु, भाप श्रीअनन्तानन्दजी महाराज के शिष्य थे। एक समय श्राप कृपा करके श्रीचित्रकूटजी के पास "त्वरी" नाम के ग्राम में, वहाँ के लोगों को विशेष करके चेताने गए, क्योंकि उस गाँववाले वैष्णवों के द्रोही थे। एक के द्वार पर आप पहुँचे, उस प्रभागे ने खड़े भी न रहने दिया, श्राप नदीतट पर जा ठहरे। उसी दिन वहाँ के राजा का पुत्र १ दूसरे श्रीअल्हजी, श्रीकोल्हजी के भाई का वर्णन, १३९ वे मूल मे होगा । तथा कर्मचन्दजी के पुत्र श्रीदिवाकरजी का ॥