पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३२७

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+- + - +- ना- + M ३०० श्रीभक्तमाल सटीक । उलटे होपड़ रहे, पण्डों ने यह अनाचार देख उनके पाँव पकड़ घसीट के मन्दिर के बाहर कर दिया। पर, श्रीजगन्नाथजी की कृपायुक्त आज्ञा से सबों ने श्रापका बड़ा आदर सम्मान किया ॥ (१५९) छप्पय । (६८४) पैहारीपरसाद ते, शिष्य सबै भये पारकर ॥ कोल्हे, अगरे, केवल, चरण, व्रतहठी नारायन । सूरज, पुरुषों, एथू, तिपुरं हरि भक्ति पारायन ॥ पद्मनाभ, गोपाल, टेके, टीलो, गदाधारी । देवा, हेम, कल्याने, गंगा गंगासम नारी ॥ विष्णु दास, कन्हर, रंगों, चांदन, संबीरी गोविंदपरा पैहारी परसाद ते, शिष्य सबै भये पारकर ॥३६॥ (१७५) वात्तिक तिलक । पयहारी श्रीकृष्णदासजी के ये सब शिष्य, श्रीगुरुप्रसाद से जीवों को संसारसागर से पार उतारनेवाले और श्रीसीतारामभक्ति में परम परायण हुए- १ स्वामी श्रीकोल्हदेवजी १५ श्रीदेवापण्डाजी २ स्वामी श्री ६ अग्नदेवजी १६ श्रीहेमदासजी ३ श्रीकेवलदासजी १७ श्रीकल्याणदासजी ४ श्रीचरणदासजी १८ श्रीशरीर श्रीगगाबाईजी,श्रीगङ्गाजी के ५ श्रीवतहठीनारायणजी समान, अथवा गङ्गादासजीतथाश्रीगगा- श्रीसूर्यदासजी दास की स्त्री गंगाजी के सदृश ७ श्रीपुरुषाजी (पुरुषोत्तमदास) १९ श्रीविष्णुदासजी ८ श्रीपृथुदासजी २० श्रीकान्हरदासजी ९ श्रीत्रिपुरदासजी (त्रिपुरहरि ) २१ श्रीरंगारामजी १० श्री पद्मनाभजी २२ श्रीचांदनजी ११ श्रीगोपालदासजी २३ श्रीसबीरीजी १२ श्रीटेकरामजी २४ एक महात्मा ने लिखा है कि २४ वे १३ श्रीटीलाजी श्रीगोविन्ददास नाम के भी एक १४ श्रीगदाघारी ( गदाधरदास ) जी । शिष्य श्रीपयहारीजी के थे।

  • "गोविदपर"-श्रीगोविदपरायण, हरिभक्त ।

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