पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३३७

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. . . . . . . . . . . mara. . . . . . . . . . . . . . . . . . ३१८ श्रीभक्तमाल सटीक। १. पद्माचार्यजी ३. स्वरूपाचार्यजी २. पृथ्वीधराचार्यजी ४.तोटकाचार्यजी ऐसा कहते हैं कि आप इस मर्त्यलोक में केवल ३२ ही वर्ष रहे। कलि संवत्सर । विक्रयमीय संवत् । ईसवी सन ३८६९८४५७८८ M.R.C.D.att. (आर० सी० दत्त), A.C.Mukerji. (ए०सी० मुकर्जी), M.A B. L.Dr W. Hunter (डावटर हन्टर), तथा श्रीतपस्वी रामजी सीतारामीय ने भी ऐसा ही लिखा है। किसी ने कलि संवत् २५०० ही लिखा है ।। "श्रीशहरदिग्विजय" नामक ग्रन्थ में आपका समस्त जीवनचरित्र है। यह भी कथा उसी की है ॥ उन्होंने चार धाम भी निश्चित किये--- अब श्रीप्रियादासजी महाराज की टीका (कवित्तों) पर ध्यान दीजिये-- (१६६) टीका । कवित्त । (६७७) विमुख समूह लैक किये सनमुख श्याम, अति अभिराम लीला जग विसतारी है । सेवरा प्रवल बास केवरा ज्यों फैलि रहे, गहे नहीं जाहि, बादी शुचि बात धारी है। तजिकै शरीर काहू नृप में प्रवेश कियो, दियो करि ग्रन्थ, "मोहमुद्गर” सुभारी है। शिष्यनि सों कयो "कभू देह में श्रावेश जानो तब ही बखानो आय सुनि कीजै न्यारी है" ॥१२४॥ (५०५) वात्तिक तिलक। श्रीशङ्कराचार्यजी ने भगवत्विमुख (सेवड़ा, अबुध, अज्ञानी, बोद्ध, नास्तिक, अनीश्वरवादी, चार्वाक, जैन, इत्यादि) समूहों को बाद में परास्त करके दंड देके, श्रीमन्नारायण श्यामसुन्दरजी के सन्मुख कर दिया, और श्रीवदरिकाश्रमादिक भगवद्धामों के माहा- स्य को प्रसिद्ध कर भगवत्स्तोत्रादि "श्रीविष्णुसहस्रनाम भाष्य" गीताभाष्यादि अति मुन्दर भगवत्यश लीला को जग में विस्तार किया । उस काल में सेवरा आदिक प्रवल नास्तिक समूह इस प्रकार से लोक में फैले थे कि जैसे वाटिका में फूले केवड़े की वास १ "शुचि” शृङ्गाररस । (अमरकोश "शृङ्गार. शुचिरज्ज्वल.") ।