पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३४७

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श्रीभक्तमाल सटीक । ३२८ m p rartneranaameranian (१७४) टीका ! कवित्त । ( ६६९ ) चल्यो प्रभु पास, लै कटोरा छविरास, तामें दूध सो सुवास-मध्य, मिसिरी मिलाइये । हिये मैं हुलास, निज भज्ञता को त्रास, ऐपैं करें जो पैदास मोहि, महासुख दाइयै ॥ देख्यौ मृदु हाँस, कोटि चाँदनी की भास, कियौ भाव को प्रकास मति अति सरसाइये । प्याइवे की प्रास, करि ओट कछु, भैखोस्वास, देखिकै निरास, कह्यो “पीवौ जू अघाइय" ॥ १३१ ॥ (४६८) वात्तिक तिलक। जब दूध सिद्ध हो गया, तब एक बड़े सुन्दर कटोरे में सुगन्ध द्रव्य तथा मिश्री मिलाया हुआ वह दूध लेके श्रीनामदेवजी भगवान श्रीविठ्ठलदेवजी के पास चले । हृदय में अतीव प्रेमानन्द का हुलास और साथ ही साथ अपनी अज्ञता का त्रास भी अर्थात् यह कि "मुझसे दूध बनाते वना कि नहीं ? प्रभु के योग्य हुआ पियेंगे? कि नहीं ? अहा! यदि मुझे अपना दास बना लें और कृपा करके दूध पी लें, तो मैं सदा सेवा करके सुख पाऊँ ।" योंही विचार करते, समीप जाके आपने श्रीप्रभु का श्रीमुख अवलोकन किया तो देखा कि श्रीविग्रहनी में कोटिन चाँदनी के भास के समान मृदु मुसक्यान प्रगट हो रही है, क्योंकि श्रीनामदेवजी के प्रेमभाव का प्रकाश प्रभु ने अपने विग्रह में प्रगट दिखाया, तब तो नव अनुरागी श्रीनामदेवजी की मति अति ही सरस हो आई। और दूध पान कराने की प्राशा से कटोरा आगे रख किसी वस्त्र का ओट कर, प्रेमसहित स्वासभर, चित्त एकाग्र कर, अर्पण किया, दूध पीने की प्रार्थना की। ' पुनः आवर्ण वस्त्र को कुछ अलग करके देखा कि सब दूध अभीतक ज्यों का त्यों ही रक्खा है, तब कुछ निराश से होके प्रार्थना करने -लगे कि “प्रभो ! आप अति अघाके दूध पीजिये जिसमें मैं भी प्रेमानन्द से अघा जाऊँ।" १"भरचोस्वास"-सप्रेम चित्त एकाग्न किया।