पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

M - 4-- mernamnaturatears-air-manprahatiaura1. 4 भक्तिसुधास्वाद तिलक । (१७५) टीका । कवित्त। (६६८) ऐसे दिन बीते दोय, राखी हिये बात गोय, रयो निशि सोय, पेपै नींद नहीं आवहीं । भयो जू सवार, फिरि वैसेही सुधार लियौ हियों कियौ गादी, जाय धखो पियो भावहीं ॥ बार बार “पीवों" कहूँ, अब तुम पीवो नाहि, श्रावै भोर नाना, गरे छूरी दे दिखावहीं । गहि लीयो कर, "जिनि कर ऐसी पीवौं मैं" तो पीवेकौं लगेई, "नेकु राखौ, सदा पावहीं" ।। १३२ ॥ (४६७) वात्तिक तिलक। श्रीनामदेवजी ने बहुत प्रार्थना की, परन्तु प्रभु ने दूध नहीं पिया, तव भाप भी उपवास ही करके रह गए, दूसरे दिन फिर वैसे ही दूध श्रौंट, आगे रख विनय किया। तब भी प्रभु ने नहीं ही पिया। दोनों दिन दूध नपीने की बात माता से न कही, भूखे ही चुपचाप रात्रि में पड़ रहे, परन्तु नींद किंचित् भी नहीं आई, केवल प्रभु के दूध न पीने की चिन्ता ही में सारी रात व्यतीत हुई ॥ . तीसरे दिन का प्रातःकाल हुआ, फिर उसी प्रकार से पूजा आदि करके दूध को घौंट, सुधार, प्रभु के आगे ला रक्खा, और जो, प्रभु के दूध न पीने के सोच से मन सिथिल हो रहा था, सो दृढ़ करके दीनतायुक्त कहने लगे, कि "हे प्रेमो दूध पी लीजिये, जिसमें मैं शोक से मुक्त हो मानन्द पाऊँ। इतने पर भी सकार ने जब दूध नहीं ही पिया, तब तो श्रीनाम-

देवजी अति अधीर हो गए, क्योंकि बाल्यावस्था के मुग्ध मधुर प्रेम

विश्वास बस आप ऐसा ही समझते थे कि "प्रभु नाना के हाथों से नित्य ही दूध पिया करते हैं।" अतः परम प्रेम की विलक्षण विह्वलता से, आप कहने लगे कि , "मैं बारम्बार सविनय कहता हूँ कि दूध पीजिये पीजिये, पर आप अब । नहीं ही पीते, और कल्ह सवेरे नाना पायेंगे मुझसे आपके दूध न १"सबार"-सबेरा, प्रभात, भोर।२"हियौं मन । ३."गाढ़ी"-दढ़ ।