पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३५०

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thiMati+Mati+mai+HNA E- MInt- + AHARA भक्तिसुधास्वाद तिलक ! पहिचान तो थी ही नहीं, इससे दो दिन तो बड़ी हानि हुई कि प्रभु ने दूध नहीं ही पिया, तब आपके भय से मैंने छूरी लेके अपना गला काटना चाहा, सो देखते ही प्रभु ने प्रति भभिलाष से दूध पान कर मुझे बड़ा सुख दिया, थोड़ा सा मैंने प्रसाद भी माँग लिया, इस भाँति प्रभु ने दूध पी पिला के मुझे जिलाया ॥" यह वार्ता सुनके श्रीवामदेवजी बोले कि “दूध पिलाने का साखी कौन है।" श्रीनामदेवजी ने कहा कि “स्वयं ठाकुरजी ही साक्षी हैं कि जिन्होंने पिया है।" नाना ने कहा कि “भला पिलाके मुझे भी तो दिखा दे। तब श्रीनामदेवजी ने उसी प्रकार से दूध बनाके सामने रख पीने की प्रार्थना की, परन्तु प्रभु ने न पिया। तब आपने अत्यन्त हठपूर्वक कहा कि “कल्ह तो तुमने पिया और आज न पीके मुझे झूठा बनाते हो ? वह छूरी अभी मेरे पास रक्खी ही है" यह सुन मन्द मुसक्यान सहित प्रभु ने फिर दूध पी लिया ॥ यह देख श्रीवामदेवजी ने अत्यन्त सुख पाया। और प्रभु से कहा कि "नाथ ! इसको अपनी सेवाही के लिये आपने प्रगट किया है, सो अब इसी से सेवा लिया कीजिये।" उसी क्षण से श्रीनामदेवजी को सब सेवा पूजा सौंप दी॥ . देखिये । इस चरित्र में प्रभुने यह दिखाया कि हम भक्तों के प्रेमवस ही होके भोजनादिक रसों को चखते हैं, तात्पर्य प्रेमही को चखते हैं । (१७७) टीका । कवित्त । (६६६), नृप सो मलेछ, बोलि, कही "मिले साहिब को, दीजिये मिलाय करामात दिखाइये। "होय करामात तो पे काहे को कसर्व करें ? भर दिन ऐपै बाँटि सन्तन सौ खाइये ॥ ताही के प्रताप श्राप इहॉली बुलायो हमैं," "दीजिये जिवाय गाय घर चलि जाइये।" दई लै जिवाय गाय सहज सुभाय ही मैं, अति सुख पाय, पाँय पखो, मन भाइयै ।। १३४॥ (४६५) "साहिब-"-स्वामी, प्रभु। २"करामात प्रभुता, सिद्धाई, परचौ, प्रभाव, परीक्षा । ३ "कसव.us"=प्राप्त करना, कमाना।