पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३५२

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HI N H-.. handrapm- Fre...10+DDHm...OM. भक्तिसुधास्वाद तिलक । नाही करि आये, जल माँझ डारि दई है। भूप सुनि चौंकि पखो “ल्यावो फेरि," पाये "कहीं" कही "नेकु मानिकै दिखावो कीजै नई है।" जल से निकासि बहु भाँति गहि डाग तट "बीजिये पिचानिदेखि सुधि बुधि गई है ॥ १३५॥ (४६४) वात्तिक तिलक । और कर जोड़ के कहा कि “आप मुझपर कृपा करके कोई गाँव वा देशराज्य लीजिये जिससे भाप सरीखे सन्तों की सेवा से मेरा नाम सुयश हो" मापने उत्तर दिया कि, "मुझको कुछ नहीं चाहिये ॥" श्लो० "ब्रह्मभूतः प्रसनात्मा न शोचति न कांवति । ___ समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं खभते पराम् ॥१॥" दिल्लीपति ने बड़ी प्रार्थना करके एक सुवर्णरचित मणिजटित सेज (पलंग)दिया कि “इस पर अपने साहिब को शयन कराइयेगा।" तब श्रीनामदेवजी ने अपनी साधुता सरखता से उसको अपने ही माथे पर रख लिया ॥ सीस पर रखते देख, यवनाधिप ने प्रार्थना की कि "मैं दस बीस मनुष्य साथ दिये देता हूँ पहुँचा देंगे, आप पर्यक को अपने मस्तक पर न रखिये" आपने इनकार कर दिया कि "मुझे मनुष्यों की कुछ भी आवश्यकता नहीं है।" और भाप अपने स्थान को चल दिये । नृप ने पीछे से कुछ लोग रक्षा के निमित्त भेज ही तो दिये।आप नदी (यमुना) तट पाए जहाँ अति अगाध जल था, वहाँ उस सेज को श्रीप्रभु को अर्पण करके जल में डाल दिया । चौपाई। "सवसे सो दुर्लभ मुनि राया। रामभक्ति रत गत मद माया॥" . इस कौतुक को देख के उन राजभृत्यों ने (जो पीछे २ श्रा रहे थे)