पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३५३

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३३४ ++ श्रीभक्तमाल सटीक । शीघ्र लोट के म्लेच्छराज से समाचार कहा, जिसे सुनते ही भूप चौंक पड़ा, और प्राज्ञा दी कि "नामदेवजी को फिरा लायो॥""" [श्रीनामदेवजी के 'गुरुभाई श्रीत्रिलोचनदेवजी थे। ऐसा लिखा है कि जब श्रीनामदेवजी की माता ने अपने पिता श्रीवामदेवजी से अपने गर्भ की वार्चा पुरी पूरी कह सुनाई, तब उसी दिन स्वप्न में श्रीप्रभु ने भी वामदेवजी से आज्ञा की कि "हाँ, इस निष्कलङ्क की सब बातें ठीक है, सत्य हैं, तुम कुछ शंका संशय मत करो, सुता तुम्हारि सकल गुन खानी।"] __सो सुन, श्राप लौट पाए घोर पूछा कि “किसलिए फिर बुलाया ? सो कहाँ" उसने कहा कि "उस सेज को तनक लाके (सुनारों को) दिखा दीजिये, क्योंकि वैसा ही नया पर्यक वनवाना है।" आपने आके उस जल से वैसे और उससे भी चढ़ बढ़ के अनेक सेज निकाल निकाल तट पर डाल दिये और कहा “लो पहिचान के अपना ले लो"यह प्रभाव देख नरेश की सुध बुध जाती रही चकित हो गया। (१७९) टीका । कवित्त । (६६४) आनि पखो पाय, "प्रभु पास तें बचाय लीजे," कीजै एक बात क साधु न दुखाइये ।" लई यही मानि, "फेरि कीजिये न सुधि मेरी." "लीजिये गुननि गाय मन्दिर लो जाइये" ।। देखि द्वार भीर, पगदासी कटि बाँधी धीर, कर सों उछीर करि, चाहे पद गाइये । देखि लीनी घेई, काहू दीनी पाँच सात चोट ! कोनी धकाधकी ! रिसे मन में न आइयै ॥ १३६ ॥ (४६३) . वात्तिक तिलक। यह दूसरा बड़ाभार्ग चमत्कार देखके, भूप फिर चरणों पर पड़, हाथ जोड़, प्रार्थना करने लगा कि "आपने गऊ भी जिला दी तब 8 एक पय्यक यवनाधिपको लौटा देकर, शेष पलगो को श्रीयमुनाजी मे आपने छोड दिया । १ पाठान्तर "लीज"। २ "उछीर"-भीड़ नहीं, घना नही, अलग अलग । "कर सो उछीर करि" हाथो से लोगो को कुछ इधर उधर सरका थोड़ा अवकाश करके। ३ "रिस" रोष, क्रोध ॥