पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३५७

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- RIMEJugnu+Argadardar-IN-HI M Antre श्रीभक्तमालसटीका दोहा-"प्रभुता को सब कोउ चहै, प्रभु को चहै न कोय । तुलसी जो मभु को चहै, आपहि प्रभुताहोय ॥" (१८२) टीका ! कवित्त । (६६१) सुनौ और परचे जो भाए न कवित्त माँझ, बाँझ भई माता क्यों न ? जो न मनि पागी है । हुतो एक साह, तुलादान को उछाह भयो, दयो पुर सब रह्यो नामदेव रागी है ।। “ल्यावौ जु बुलाइ" एक दोई तो फिराइ दिये, तीसरे सो पाए “कहा कहो ? बड़ भागी है"। कीजिये जु कछु अंगीकार मेरो भलो होय," "भयो भलो तेरो, दीजै जो पै पासा लागी है ॥ १३६ ।। (४६०) वात्तिक तिलक । अब श्रीनामदेवजी के परचे प्रभाव, जो श्रीनामास्वामीजी के छप्पय में नहीं कहे गए हैं, सो सुनिये, देखिये ऐसे भक्तिभरे श्रीनामदेवचरित्र सुनके श्रीसीतारामजी में तथा श्रीसीतारामनाम में जिसकी मति प्रेम से न पगी, उसकी माता बाँझ क्यों न हुई ? इस निज यौवनविटप कुठार पुत्र को व्यर्थ ही क्यों उत्पन्न किया ? पण्डरपुर में एक बड़ा साहु (सेठ) था, उत्साहपूर्वक सोने का तुलादान करके उसने सबको सुवर्ण दिया। परमानुरागी श्रीनामदेवजी ही एक रह गए। आपके पास भी सादर बुलाने को मनुष्य भेजे, परन्तु आपने एक दो बेर तो उनको कोरे ही लौटा दिया कि "मुझे नहीं चाहिये।" तीसरी बार बड़ी पार्थनापूर्वक उसने बुलाया तो आप जाके बोले कि “हे बड़- भागी सेठ ! कहो क्या कहते हो?” उसने बिनय किया कि "आप कृपाकरके इसमें से कुछ सुवर्ण अंगीकारकीजिये कि जिसमें मेरा भला हो।" आपने उत्तर दिया कि “तेरा भला हुआ ही है, क्योंकि तूने सबको दिया। जिसकी आशा लगी हो उसको दे, और यदि मुझको भी देने के हेतु तेरी अाशा लगी ही है तो दे॥" - - १"रहो"-शेष रहे । २"फिराइ दिये"=कोरे ही लौटा दिये ।