पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३६१

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ame Main+Hindi+++ NA श्रीभक्तमाल सटीक। ब्राह्मण पर क्रोध करके क्या कहें ? पर तुम्हें समझाते हैं कि दे दो।" तथापि, एकादशी को अन्न देना निषेध जानके, आपने नहीं ही दिया। जब चार पहर बीत गए, तब अन्नाभिलाषी भूखे ब्राह्मणदेव, पाँव फैलाके मर गए। लोग आपके भाव निष्ठा को न जानके, कहने लगे कि "नामदेव को ब्राह्मण ने ब्रह्महत्या दी इनको छूना न चाहिए, अब यह इत्या छूटनेवाली नहीं है ॥" ( १८६ ) टीका । कवित्त । ( ६५७ ) रचिकै चिता कों, विप्र गोद लेके, बैठे, जाइ दियो मुसुकाइ "मैं परीक्षा लीनी तेरी है । देखि तो सचाई, सुखदाई, मनभाई मेरे, भए अन्तर्धान, परे पाय प्रीति हेरी है। जागरन माँझ, हरिभक्तन को प्यास लगी, गए लेन जल, प्रेत भानि कीनी फेरी है। फेटे तें निकासि ताल, गायोपद ततकाल, बड़ेई कृपाल रूप धस्यो छवि ढेरी है ॥१४३॥(४८६) वात्तिक तिलक। तदनन्तर, श्रीनामदेवजी चिता रच, मृतक विष के शरीर को गोद में लेकर चिता पर जा बैठे, और किसी आज्ञाकारी जन से कहा कि "अग्नि लगा दो।" तब तो श्रीएकादशीपति प्रभु ने मुसुकाके कहा कि "प्रिय भक्त! जलो मत, तुम्हारे हृदय के शीतल करनेवाले मैंने ही तुम्हारी परीक्षा ली है, तुम्हारे व्रत की तथा ब्रह्मण्यता की सचाई देखी, सो मुझको बड़ी ही प्यारी सुखदाई लगी।” यह कहके श्रीप्रभु उस चिता ही पर से अन्तर्धान हो गए। इस प्रकार, वैष्णवधर्म तथा ब्राह्मण, श्रीतुलसी, श्रीरामनाम, भौर श्रीप्रभु में नामदेवजी की परमप्रीति देख, एवं प्रभु के चरित्रों १ फेट"कटिबन्धनवस्त्र ।