पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३६२

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HIMJArraman -18JHinue भक्तिसुधास्वाद तिलक । की विचित्रता विचार, सब लोग जय जयकार कथनपूर्वक श्रीनामदेव- जी के चरणों में पड़के प्रशंसा करने लगे। ___अन्य एकादशी की रात्रि में आपके गृह विषे जागरन उत्सव हो रहा था, उसमें हरिभक्तों को प्यास लगी, आप स्वयं जलाशय में जल लेने गए, क्योंकि वहाँ एक बड़ा प्रेत रहता था इससे और किसी को न भेजा। सो जब आप वहाँ पहुँचे तो कई प्रेतों को साथ लिये वह प्रेत बड़ा भारी विकराल भयंकर रूप धारण कर आप के सन्मुख श्रा खड़ा हुआ । उसको देख, बापने उसमें भगवद्भाव ही आरोपण किया, क्योंकि भापकी दृष्टि में तो और भाव रह ही नहीं गया, इससे अपने फेट से ताल अर्थात् काश्यताल (झाँझ) वा करताल निकाल के तत्काल ही यह पद बनाके सप्रेम गाने लगे। "ये आए मेरे लम्बकनाथ । धरती पाँव स्वर्गलों माथो जोजन भरि भरि हाथ ॥ शिव सनकादिक पार न पावे, तसेइ सखा विराजत साथ। नामदेव के स्वामी अन्तर्यामी कीन्ह्यो मोहिं सनाथ ॥ १ ॥ __सुनतेही सर्वान्तर्यामी परम कृपालु ने प्रेतरूपों को विनाश करके, परम विराशि रूप धारण कर दर्शन दिया। निज रूपामृत पिलाके कहा कि "जल ले जाव"जल लाके आपने भगवद्भक्तों को पिलाया श्रीनामदेवजी की जय ॥ (३१) श्रीजयदेवजी। (१८७) छप्पय । (६५६) जयदेव कविनृप चक्कवै, बँडमंडलेश्वर आन कवि॥ प्रचुर भयो तिहुँलोक "गीतगोविन्द" उजागर । कोक काव्यनवरससरससिंगारकोसागर ॥ अष्टपदी अभ्यास । करै तेहिं बुद्धि बढ़ावै । (श्री) राधारमन प्रसन्न सुनन १"चक्क" चक्रवर्ती, सातोद्वीप का राज राजेश्वर । २ "मण्डेश्वर-नव खण्डों में से एक खण्ड का महाराज । ३ "मण्डलेश्वर सौ दो-सौ कोस के मण्डल का राजा ॥ ।