पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३६३

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३४४ MINin ..MMEANIBHI194.4mmamripu4IMJHIMAnime44. श्रीभक्तमाल सटीक। निश्चय तहँ आचैं । संत सरोरुहखंड को "पद्मा" पति सुखजनक रवि । जयदेव कवि नृप चक्कवै बँडमंडले. श्वर आन कवि॥४४॥ (१७०) वात्तिक तिलक। कलियुग में संस्कृत के कवियों में श्रीजयदेवकविराज, चक्रवर्ती महाराज सरीखे हुए, और, और सब कवि, खण्डेश्वर वा मण्डलेश्वर राजाओं के सरिस हैं । उक्त महा-कवि-कृत अति उजागर "श्री. गीतगोविंद" काव्य, देव मनुष्य नाग इन तीनों लोकों में प्रचुर विख्यात हुआ, कैसा "गीतगोविंद” है कि, कोकशास्त्र का, काव्य के सम्पूर्ण अंगों का, नवों रसों का, तथा सरसश्रृंगार का रत्नाकर समुद्र ही है। 1 और गीतगोविंद की अष्टपदियाँ जो कोई अभ्यास करे (पढ़े), उसकी बुद्धि को बढ़ाती हैं । तथा जो सप्रेम गान करता है तो श्रीराधा- वल्लभजी वहाँ उसके सुनने के लिये प्रसन्न होके प्रगट वा गुप्तरूप से 'अवश्य ही पाते हैं । सन्तरूपी कमल समूहों को सुख उत्पन्न करनेवाले, श्रीपद्मावतीजी के पति (श्रीजयदेवजी) सूर्य समान हुए। (१८८) टोका । कवित्त । (६५५) किन्दुविल्लु ग्राम, तामैं भए कविराज राज, भयो रसराज हिये मन मन चाखियें । दिन दिन प्रति रूख रूख तर जाइ रहैं, गहें एक गूदरी, कमंडल को, राखियें ।। कही देव विप्र सुता जगन्नाथदेवजू को, भयो जब समै, चल्यो दैन प्रभु भाखियें । "रसिक जैदेव नाम मेरोई सरूप, · ताहि देवो ततकाल अहो, मेरी कहि साखिय" ।। १४४ ॥ (१८५) वात्तिक तिलक । सब कविराजों के राजा श्रीजयदेवजी पूर्वदेश में "किन्दुविल्व" १"खण्ड"- कदम्ब अर्थात् समूह | "सरोरुह"-कमल के समूह । "रसराज"-रसो का राजा, शृङ्गार रस ।। ..