पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३७०

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भक्तिसुधास्वाद तिलक । - - - ANImauritin वातिक तिलक ! : । एक दिन माली की कन्या बैंगन (माँटा) की बारी में बैंगन तोड़ती हुई श्रीगीतगोविन्द के पंचम सर्ग की कथा का यह पद गाती थी"न कुरु नितम्बिनि गमनविलम्बनमनुसर तं हृदयेशम् ॥ धीरसमीरे यमुना- तीरे वसति वने वनमाली" (अर्थ-दूती श्रीराधिकाजी से कहती है कि हे नितम्बिनि ! अब गमन में विलम्ब मत करो, उन प्राणप्रिय के समीप चलो। वे वनमाली वनविषे यमुना के कूल में धीर समीर कुंज में बसते हैं।) इसी पद को सुनते हुए उस माली की सुता के पीछे पीछे श्रीजगन्नाथजी निज अंग में झीना मँगा (जामा) पहिने फिरते डोलते थे, और जब वह तान तोड़ती थी तब प्रेममादकता से झूमके "बहुत अच्छा" कहते थे, क्योंकि पद सुनते ही उस समय के विरहाग्नि की सुधि आ जाती थी, अर्थात् विरहाग्नि से संतप्त हो के उस दूती को प्रियाजी के पास आपहीने भेजा था॥ ' जब वह कन्या अपने घर को चली गई तब बैंगन के कंटकों से मँगा फाड़के श्राप मन्दिर में आए और उसी समय पुरुषोत्तमपुरी का राजा दर्शन करने आया, सो फटे हुए वनों को देखके पंडा से पूछा "क्योजी! श्रीजगन्नाथजी के ये वन कैसे फटे हैं ? सत्यः२कहो, क्या हुआ है ? " पंडा ने कहा-"हम नहीं जानते कि क्या हुया है।” तब प्रभु ही ने जनाया कि “वह माली की कन्या बैंगन की पारी में गाती थी, सो हम सुनते थे, इससे वस्त्र फट गए। हमको वह कथा अति ही प्रिय लगी है” तात्पर्य “उसको बुलाके गवाओ॥" . ऐसी आज्ञा सुन के उसी क्षण पालकी पर चढ़ाके उस कन्या को लाए । श्राके गान और नृत्य करके उसने प्रभु को प्रमन्न किया ।। (१९५) टीका । कवित्त । (६४८) फेरी नृप डौंड़ी, यह भीड़ी बात जानि महा, कही "राजा रंक पर्दै नीकी ठौर जानिक | अक्षर मधुर और मधुर स्वरानि हि सों गावं १ "ऑडी" =गहरी, गभीर ॥