पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३७३

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and- Mont- श्रीभक्तमाल सटीक। मार डालने का क्या काम है" तब दूसरे दुष्ट बोले कि “मला जो कहीं पहिचान के पकड़ा दे, तब क्या करोगे?" इत्यादि कुतर्क कुसंमत करके श्रीजयदेवजी के हाथों तथा पगों को काटकर बड़े भारी गड्ढे में डाल दिया और चले गए। तदनन्तर उस वन में आके एक राजा ने श्रीजयदेवजी को देखा, उसी क्षण उसके हृदय में ज्ञान उदय हुया और चमत्कार क्या देखता है कि हाथ पग तो कटे हैं, परन्तु आपके तेज की उजि- याली हो रही है और मुखारविन्द प्रसन्न है तब राजा ने आपको गड़हे से निकलवाकर बाहर बैठालके दर्शन किया मानो भनेक चन्द्रमाओं के राशि का प्रकाश हो रहा है। फिर आपसे हाथ पग कटने का वृत्तान्त पूछा। श्रीजयदेवजी ने कहा कि "मुझे इसी प्रकार का शरीर मिला है।" इस प्रसंग में कोई महानुभाव इस प्रकार का भाव कहते हैं कि श्रीजगन्नाथजी ने जो कहा था कि "रसिक जयदेव मेरोई स्वरूप जानो सो भी अपने वर्तमान विग्रह की सदृशता कराके लोक को दिखाके फिर अच्छा कर दिया | (१९८) टीका । कवित्त । (६४५) बड़ेई प्रभाववान, सके को बखान ? अहो मेरे कोहू भूरि भाग, दर्शन कीजिये । पालकी विठाइलिये, किये सब ठूठ नीके, जीके भाए भए “कछु आज्ञा मोहिं दीजिय” ॥ करौ हरि-साधु-सेवा, नाना पकवान मेवा, आवे जोई सन्त तिन्हैं देखि देखि भीजिये"। भाए वेई ठग, “मालो तिलक चिलक किये" किलकि के कही “बड़े बन्धु लेखि लीजिये" ॥ १५४॥(४७५) । श्रीजयदेवजी के इस प्रकार गंभीर वचन सुनके राजा अपने मन में विचारने लगा कि “ये तो कोई बड़े ही प्रभावयुक्त अकथनीय महानुभाव हैं, मेरे कोई बड़े भाग्य उदय हुए कि मैंने इनके दर्शन "भौजिय"=प्रेमाश्रुयुक्त, प्रेमरस मे भीगा । २ "माला तिलक घिलक किये" - कण्ठी माला तिलक आदि सन्त भेष बनाए।