पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३८७

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+ 4 MN+-- - + + + श्रीभक्तमाल सटीक । हृदय में धारण किये रहते हैं। श्रीहरि ने अपना हाथ पकड़ाके और, फिर (उस देशकाल में छुड़ा भी लिया, तब आपने कहा कि “मेरा कर तो चटकाए जाते हो, परन्तु बदौ तब कि जब मुझ, दुर्वल के हृदय में से भी छटक जा सका। "चिन्तामणि" नाम प्रमदा (वेश्या) के संग से, विषय से विरत होकर आपने श्रीव्रजवधून की केलि का अनूप वर्णन किया है। (१११) टीका । कवित्त । (६३२) __"कृष्णवेना" तीर एक दिज मतिधीर रहै है गयो अधीर संग "चिन्तामणि" पाइक । तजी लोकलाज, हिये वाही को जु राज, भयो निशि दिन काज, वहै रहै घर जाइकै ॥ पिता को सराध, नेकु रह्यो मन साधि, दिन शेष मैं आवेश चल्यो अति अकुलाइकैं। नदी चढ़ी रही भारी, पै ये न अवारी नाव भाव भयो हियो जियो जात नधिजाइ ॥ १६५॥ (४६४) वात्तिक तिलक । दक्षिण में "कृष्णवेणा" नदी के तट पर ब्राह्मणकुल में श्री- विखमंगलजी का जन्म था, प्रथम बड़े भतिधीर थे पर चिन्तामणि नाम की एक वेश्या नारी के प्रेम में वह अतिशय आसक्त थे, यहाँ तक कि लोक की लाज धैर्य इत्यादि खोके दिन रात उसी के घर, जो उस नदी के दूसरी ओर था, रहा करते, उनके हृदय में उसी का पूरा पूरा राज्य था। एक दिन पिता के श्राद्ध के कारण जैसे तैसे मन मार के दिन भर तो उसी कार्य में लगे रहे परन्तु दिन के अन्त में बड़े अधीर होके अकुलाके उसके घर की ओर चले ॥ सरिता तीर पहुँचे तो देखा कि नदीतो बड़ी चढ़ी हुई है और उस पार जाने की कोई सामा, नाव बेड़ा कुछ नहीं है । अत्यन्त प्रेमभाव में इनका हृदय डूबने लगा। "हस्तमुत्क्षिप्य नियति बलात् कृष्ण 1 किमदुभुतम् हृदयाद् यदि निर्यासि पौरुष गणयामि ते ॥" दो० "बाँह छुड़ाये जात हो, निबल जानि के भोहि । हिरदय ते जु छुड़ाइहौ, मर्द बदौ तब सोहिं ।।" १ "अबारी"==अबेर । २ "धिजाइकप्रेम मे भीग के ।