पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३८९

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३७० antarmus a t ta.. mmastramweari matrampramana r t-1-1-1-Amriti श्रीभक्तमाल सटीक। रस्सा लटकाय रक्खा है, चटपट श्राप उसके सहारे से चढ़के छत पर पहुँच गए। ऊपर किवाड़ लगे देखके ये आँगन में धम से कूद पड़े, धमाके का शब्द सुन इनकी प्रेमिनी जाग उठी, लोग दीप जलाके उसके प्रकाश में जो देखें तो श्राप हैं श्रीविल्वमंगल महाशयजी॥ चिन्तामणि झिझलाके बोली कि "हा ! तुम बड़े ही अमंगल हो। तुमने थाके क्या किया?" अस्तु, स्नान करा, सूखे पत्र पहिरा, उसने पूछा कि “बताइये तो श्राप नदी पार क्योंकर हुए और ऊपर चढ़े कैसे ? ॥” . (२१४) टीका । कवित्त । (६२९) "नौका पठाई. दार लाव लटकाई देखि मेरे मन भाई, मैं तो तर लई जानिकै"। "चलो देखौं अहो यह कहा धौ प्रलाप करें" देख्यौ विषधर महा, खीजी अपमानिकै ॥ "जैसो.मन मेरे हाड़ चाम सौं लगायो, तैसो स्याम सौं लगाव तो जानिये सयानिके। मैं तो भये भोर भजी युगलकिशोर अब, तेरी तुही जाने चाहौ करो मन मानिकै"॥१६८॥ (४६१) __ वात्तिक तिलक । इन्होंने उत्तर दिया कि “मैंने जभी देखा कि तुमने मेरे लिये नाव भेज दी है और छत से डोर लटका रक्खी है, तो मैंने तभी तुम्हारी प्रीति और कृपा की विलक्षणता जान ली।" वह बोली कि "ये क्या बड़बड़ाते हैं चलो लोग देखें तो कि डोर कहाँ और कैसी है ?" जाके देखें कि वह बड़ा विषधर अजगर है ॥ यह देख चिन्तामणि झुंझला उठी और अपमान तथा क्रोधपूर्वक कहने लगी कि--"मेरे हाड़ चाम में जैसा अनोखा अनुराग किया, यदि वैसा श्यामसुन्दर मुरलीधर, शोभासिन्धु, करुणाकर में लगाते तो तुम्हारा सयानापन था । अब तो तेरी बात तूही जाने, जो चाहे सो कर, पर मैं तो भोर होते ही श्रीयुगल सर्कार के भजन में चित्त लगाऊँगी॥"