पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३७७ Amritamaramanueturneantertamanart-11-0ampur- भक्तिसुधास्वाद तिलक । (२२२) टीका । कवित्त । (६२१) चिन्तामनि सुनी “वन मांझ, रूप देख्यो लाल,” ढे गई निहाल आई नेह नातो जानिक । उठि बहु मान कियो, दियो दूध भात दोना "दै पठा नित हरि हितू जन मानि के"॥ लियो कसे जाइ, “तुम्हें भायं सों दियो जो प्रभु, खैहौं नाथ हाथ सौं जो दैहैं सनमानि" ।बैठे दोऊ जन, कोऊ पावै नहीं एक कन, रीझे श्यामघन, दीनो दूसरो हूँ पानि के ।। १७६ ।। (४५३) बात्तिक तिलक । चिन्तामणिजी को यह विदित हुआ कि "श्रीविल्वमंगल पर विशेष कृपा श्रीयुगल सरकार की हुई, और श्रीव्रजचन्द्र महाराज के दर्शन पाए हैं।" वह अति हर्ष को प्राब हुई, निहाल हो गई, पिछला नेहनाता सुरति कर अनेक मनोरय करती वह भी श्रीवृन्दावन में आपके पास बड़े भाव से आई । देखते ही आप उठ खड़े हुए, बड़े आदर भाव से सतकार किया,श्रीयुगल सरकार (ललीलाल) का प्रसाद दूधभात जो कि प्रभु नित्य ही अपना स्नेही जन मान के भेज दिया करते थे, सो दिया ।। ___ इन्होंने पूछा कि “यह प्रसाद का दोना कहां से कैसे आया किसने दिया ?" आपने उत्तर दिया कि “स्वयं भगवत् कृपाकरके अपने कर- कमलों से भेज दिया करते हैं।” यह सुनते ही बोल उठी कि “जब वे कृपा करके श्राप अपने हाथों से ही देंगे तो लँगी॥” अब न आप पार्दै न चिन्तामणि पावें, दोना रक्खा है और दोनों भजन कर रहे हैं। श्रीविल्वमंगलजी की भक्तिभाव तथा श्रीचिन्तामणिजी का सच्चापन जान के श्रीभाववश भगवान ने दर्शन दे दूध भात का दूसरा दोना भी कृपा किया ही। कृतकृत्य हो दोनों ने धन्यवादगुणानुवाद-पूर्वक मिलके प्रसाद-पाया। आगे क्या कहूँ ? प्रेम की जय ! प्रेम प्रिय प्रभु की जय !! परम प्रेमियों की जय !!! १ बहुत से लोग भूल से इन्ही को सूरदासजी समझते हैं । यह अन्यथा है । सूरदासजी की कथा अन्यत्र है (छप्पय ७३ देखिये) ॥