पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३९८

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-H+MAHA r jumar N mantraputreme++ HIMA N++meanigraturH-1 भक्तिसुधास्वाद तिलक । श्रीकृष्णचन्द्रजी की कृपारूपिणी चेलि (लता) का फल सत्संग को कह दिखाया। ___उक्त ग्रन्थ "श्रीभक्तिरत्नावली" के तेरह ही विरंचन (माला की लढ़ियों) में करोड़ों ग्रन्थों का तात्पर्य संग्रह किया गया है । श्रीमद्- भागवतरूपी महासमुद्र में से निकालके "भक्तिरत्नावली" भक्ति की माला पाँचसौ रत्नों (श्लोकों) की अपूर्व रची है ॥ (२२४) टीका । कवित्त । (६१९) जगन्नाथ क्षेत्र माँझ बैठे महाप्रभुजू चे, चहुँ ओर भक्त भूप भीर अति छाई है। बोले "विष्णुपुरी, पुरी काशी मध्य रहे, जाते जानि- यत मोक्ष, चाह नीकी मन आई है" | लिखी प्रभु चीठी "आपु मणिगण माला एक दीजिए पठाइ, मोहिं लागती सुहाई है। जानि लई बात, निधि भागवत, रत्नदाम दई पठै आदि मुक्ति खोदिक बहाई है ।। १७७ ॥ (४५२) वात्तिक तिलक । एक दिन श्रीविष्णुपुरीजी के सतगुरु महाराज श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभुजी श्रीजगन्नाथपुरी में भक्तराजों की भीड़ के मध्य सन्तसमाज में विराजमान थे, उन्हीं में से कोई कोई कहने लगे कि "विष्णुपुरीजी ने काशी में वास किया है इससे जान पड़ता है कि मुक्ति की इच्छा भले प्रकार मन में रखते हैं।" महाप्रभुजी ने सबको समझाया कि ऐसा । नहीं है, वे उनमें से हैं कि जो, “मुक्ति निरादरि भक्ति लोभाने” इम प्रकार के अनुरागी हैं। ___ और उन लोगों के समाधानार्थ यह काम किया कि इनको एक पत्र लिखा कि "रत्नों की एक माला भेज दो, मुझे मिय लगती हैं।" ___ आपने श्रीमद्भागवत में से रत्नरूपी ५०० श्लोक चुन और संग्रह करके, अपूर्व मालारूपी एक पोथी “भक्तिरत्नावली' नाम रख । भेज दी, कि जिसमें रूखी मुक्ति सूखे मोक्ष को तो जड़ से ही खाद के बहा दिया है और भागवद्धर्म हरिभक्ति भगवत्प्रेम की महिमा