पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३९९

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44-41.+ ..........................भाभक्तमाल सटीक । तथा ऐसी विलक्षणता प्रकाशित की है कि जिसको पढ़ते ही सब “साधु साधु" कह उठे । उक्त ग्रन्थ भक्तों के देखने ही योग्य है । ( २२५ ) छप्पय । ( ६१८) "विष्णुस्वामिसंप्रदाय” दृढ़ "ज्ञानदेव” गंभीरमति ॥ "नाम" "तिलोचन शिष्य, सूर शशि सदृश उजागर। गिरा गंग उनहारि काब्यरचना प्रेमाकर ॥ आचारज हरिदास, अतुल बल आनंददायन।तेहि मारग “बल्लभै" विदित, पृथुपधति परायन ॥ नवधा प्रधान सेवा सुदृढ़, मन बच क्रम हरिचरनरति । "बिष्णुस्वामिसंप्रदाई दृढ़ "ज्ञानदेव” गंभीरमति ॥४८॥(१६६) वात्तिक तिलक । श्रीविष्णुस्वामीसम्प्रदाय में गम्भीरमति "श्रीज्ञानदेवजी प्रसिद्ध हैं, जिनके शिष्य (१)श्रीनामदेवजी और (२) श्रीत्रिलोचनजी, सूर्य तथा चन्द्र के सरिस उजागर हुए और श्रीज्ञानदेवजी की गिरा (वाणी) श्रीगंगाजी की नाई निर्मल और संसार को पवित्र करनेवाली हुई, जिस वाणी से प्रेम की खानि काव्य की रचना कर हरियश गाया । प्राचार्य (गुरुवर्ग), तथा हरिभक्तों का, अतु: लित बल विश्वास आपके हृदय में था, जिन सबों को अति आनन्ददाता हुए। १.श्रीज्ञानदेवजी, । ३. श्रीत्रिलोचनजी, २. श्रीनामदेवजी, । ४.श्रीवल्लभाचार्यजी। इसी मार्ग (सम्प्रदाय) में जगविख्यात, पृथुपद्धति अर्थात् प्रभुप्रजन अर्चन में परायण, "श्रीवल्लभाचार्यजी" हुए, कि जिन्होंने नवधा भक्ति ही को प्रधान मान, प्रभु की सेवा में अत्यन्त दृढ़ होकर मन वचन कर्म से श्रीहरिचरणों में प्रीति की ॥