पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४०१

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३८२ श्रीभक्तमाल सटीक। को श्रीभगवतूचरण में सत्य प्रेम था दूसरे “महानदेव,” तीसरे "सोपानदेव ॥" जब श्रीज्ञानदेवजी पढ़ने योग्य हुए, तब ब्राह्मणों के पास वेद पढ़ने गए, परन्तु किसीने पढ़ाया नहीं, कारण यह कहके कि “तुम्हाररा ब्राह्मणत्व नष्ट हो गया है। श्रीज्ञानदेवजी भगवद्विभूति साधु अवतार तो थे ही, अतः सभा करके इन्होंने सब ब्राह्मणों से कहा कि "आप लोगों के मन में हमारी क्या न्यूनता आई है, क्यों वेद नहीं . पढ़ाते ?" ब्राह्मणों ने वही उत्तर दिया कि “तुम्हारे पिता संन्यास लेकर पुनः आय के गृहस्थ हुए इससे तुम्हारा ब्रह्मत्व नष्ट हो गया, वेद का अधिकार नहीं रहा ।" ___आपने कहा कि "पूर्णब्रह्म श्रीभगवान को मन कर्म वचन से सप्रेम जाननेवाला वास्तविक ब्राह्मण है, न कि केवल वेदपाठी ही, "वेद तो एक भैंसा भी पढ़ सकता है" इतना कहकर जिसके श्वास से वेद हुए हैं उन श्रीयुगलसकार (ललीलाल) का स्मरण कर, पास के एक भैंसे को कि जो संयोग से वहां ही आ गया था, आज्ञा की कि "वेद पढ़, सुना।" वह पशु, शिक्षित ब्राह्मण से भी भली रीति तथा उत्तम मधुर स्वर से स्पष्ट और शुद्ध वेद पढ़ चला। सुन- के सबकी बुद्धि चक्कर में था गई, लजित हुए, और भगवत् की भक्ति में प्रतीति की, श्रीभक्ति महारानी का प्रभाव और प्रताप जाना।

  • श्रीज्ञानदेवजी के चरणों में पड़कर अपने देह जात्यभिमान को

त्याग, आपके शिष्य, तथा अनुमत में स्थित हो, दीनतापूर्वक - भगवद्भक्ति ग्रहण की। (३८) श्रीत्रिलोचनजी। (२२८) टीका । कवित्त । (६१५) - भये उमै शिष्य नामदेव श्रीतिलोचनज, सूर शशि नाई किया जग में प्रकास है । "नाम" की तो बात सुनि पाए सुनो दूसरे की सुनेई बनत भक्तकथा रस रास है ॥ उपजे पनिक कुल सेव - "नाम"-श्रीनामदेवणी ॥