पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४०८

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भक्तिसुधास्वाद तिलक ! र श्रीवनमा चार्यजी 6 श्रीलक्ष्मण भट्टजी श्रीविष्णुस्वामीजी ()श्रीनामदेवजी तथा श्रीत्रिलोचनजी - शिवजी से प्रसिद्ध ४६वें श्रीज्ञानदेवजी (1) श्रीज्ञानदेवजी के छप्पय में जो श्री १०८ नाभा स्वामीजी ने "पृथु पद्धति परायण अभिराम तिवावे श्रीवल्लभजी" लिखा. सो उनका श्रीगोकुल में स्थान है । इनको जानके और सुयश सुनके मेरा मन इनमें रीझ गया है। (२३६) टीका । कवित्त । (६०७) गोकुल के देखिवे की गयौ एक साधु सूधो, गोकुख मगन भयो रीति कछु न्यारियें । छोंकर के वृक्ष पर बटुवा झुलाय दियो, कियो जाय दरशन, सुख भयो भारियें ।। देखे भाइ नाहीं प्रभु, फेरि श्राप पास आयो चिंता सौं मलीन देखि, कही जा निहारियें। वैसेई सरूप केई, गई सुधि वोल्यो श्रानि, लीजिये पिचानि कह्यो सेवा नित धारियें ॥ १८८ ॥ (४४१) १"छोकर" क्षेमकर, समी का वृक्ष !!