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श्रीभक्तमाल सटीक

(२)श्रीनृसिंह भगवान का अनुकरण (लीला) में एक प्रावेशी भक्त नृसिंहजी के रूप बने । उन्होंने हिरण्यकशिपु बननेवाले को मार डाला, वे ही फिर लीला में श्रीदशरथ महाराजजी का रूप बने और श्रीसीताराम विछोहते ही अपना शरीर त्याग दिया । (३)"श्रीकृष्णजी को श्रीयशोदाजी ने बाँधा" ऐसी कथा सुनते ही एक भक्ता "रतिवन्ती बाई” ने तन त्याग दिया। प्रगट है, सबको विदित है, साधु इसके साक्षी हैं कि कलियुग में "प्रेम प्रधान है," कलियुग के प्रेमियों में तीन प्रधान श्रावेशी हैं, इनका प्रेम प्रत्यक्ष सच हो गया।

(२३९) टीका। कवित्त। (६०४)

सन्त साखि जान कलिकाल में प्रगट प्रेम बड़ोई असत जाके भक्ति में प्रभाव है। हूतो एक भूप रामरूप ततपर महा, राम ही की लीला गुन सुनै कार भाव है । विष सों सुनावै सीता चोरी कौन गावै हियो खरो भरि आवै, वह जानत सुभाव है । पखो दिज दुखी निज सुवन पठाइ दियो जाने न सुनायो भरमायौ कियो घाव है ॥१६०॥ (४३६)

वात्तिक तिलक।

इसके साक्षी साधु हैं कि कलिकाल में प्रेम ही प्रगट है क्योंकि इन तीनों का प्रेम प्रगट हो गया । उसको बड़ा अभागा और गया ही हुआ जानो किजिसको इन सन्तों की कथा सुनके भी, श्रीभक्तिजी में प्रभाव अर्थात् अनादर ही बना रहै ॥

(४०)श्रीभक्तदास कुलशेखरजी।

दक्षिण में एक गजा श्रीरामोपासक श्रीरामरूप में बड़े अनन्य दास्यरसावेशी प्रेमी भक्त थे, श्रीजानकीजीवनजी का परत्व उन्हें जैसा चाहिये वैसा था, बड़े भाव से श्रीअवधविहारीजी की लीला श्रीवाल्मीकीय रामायण कथा सुना करते थे । इनका "कुलशेखर" नाम था, “भक्तदास” नाम से भी प्रसिद्ध थे। जो विष पण्डित