पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४१२

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twitter- MAMI भक्तिसुधास्वाद तिलक । उनको कथा श्रवण कराते थे वे इनके अलौकिक प्रेम को जानते थे, क्योंकि एक समय आरण्यकाण्ड की खरदूषण की चढ़ाई की कथा सुन- कर राजा आवेश में आ गया, आप घोड़े पर चढ़ हथियार बांध सेना साथ ले, शीघ्रतम पयान करने की प्राज्ञा दी। तो चतुर पण्डित ने देश- कालानुसार युक्ति से इनको लौटाया--इसलिए श्रीमहारानीजी की चोरी की कथा उन्होंने इन्हें कभी नहीं सुनाई ।। एक दिन श्रीपण्डितजी दुखी हुए. इससे अपने पुत्र को कथा सुनाने के लिये भेजा । राजा का सुभाव नहीं जानने से उसने श्रीसीताहरण सुनाया, सुनते ही भक्त राजा को यह भ्रम आ गया कि यह इसी समय सत्य हो रहा है । इससे हृदय में घाव सरीखा दुःख हो गया । राजा ने लंका की ओर धावा किया । .. (२४०) टीका । कवित्त । (६०३) ___ "मार मार करि कर खडग निकासि लियौ, दियो घोरौ सागरमैं, सो आवेस अायो है । “मारौं याहिकाल दुष्ट रावन विहाल करौं, पाँवन को देखौं सीता" भाव हग छायो है | जानकीरवन दोऊ दरशन दियौ पानि, बोले "विनमान कियो, नीच फल पायो है" । सुनि सुख भयो, गयो शोक हृदै दारुन जो, रूप की निहारनि यो फेरि के जिवायो है ॥ १६१ ॥ (४३८) बात्तिक तिलक। खड्ग निकाल "मार मार" कहता, लङ्का की ओर घोड़ा दौड़ाया यहाँ तक आवेश पाया कि समुद्र में भी घोड़ा डालही दिया, "दुष्ट रावण को व्यथित कर दूंगा, इसी क्षण मारडालूंगा; अपनी माता श्रीजानकीजी महारानी के चरणकमल के दरशन कर अभी ले आऊँगा।" इस प्रकार वीरवाक्य कहते हुए प्रेम में मग्न और नयनों में प्रेमाश्रु भरे हुए सागर में चले ही जा रहे थे कि उसी क्षण, भक्तपणापालक प्रेमनिर्वाइक जनरक्षक श्रीजानकी श्रीजानकीरमणजी श्रीलक्ष्मणजी और श्रीहनुमदादि कपि सेना समेत पुष्पक विमानारूढ़, भक्त के समीप अाकाश में प्रगट हो, दर्शन दे, इन्हें कृतकृत्य कर, बोले कि "हे पिय पुत्र ! उस दुष्ट को हमने