पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४१३

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श्रीभक्तमाल सटीक । सपरिवार मार डाला, उस नीच रावण ने अपनी करनी का फल पाया। तुम चिन्ता मत करो, देसो अपनी माता के दर्शन करो। हम अब अपनी राजधानी श्रीभयोध्याजी को जाते हैं, तुम भी घर जामो।" श्रीवचनामृत सुनते ही इनके हृदय से दारुण शोक जाता रहा, दर्शन पाके भति कृतार्थ हुए। "मृतक शरीर प्राण जनु पाये ॥” श्राप लोटके अपने घर पाए। परमावेशी भक्त श्रीकुलशेखरजी की जय ।। "प्रेम कलियुग प्रधान ॥" "कलिकाल में प्रगट प्रेम ॥" दो० "कलियुगसम युग पान नहिं, जो नर करि विश्वास । गाइ राम गुणगण विमल, भव तर विनहिं प्रयास ।।" चौपाई। "कलि कर एक पुनीत प्रतापा ! मानस पुण्य होय, नहिं पापा ।" “कलि केवल रघुपति गुण गाहा । गावत नर पावहिं भव थाहा ।।" दो० "सुनु व्यालारि, करालकलि, विनुप्रयास निस्तार ॥" "कृतयुग, त्रेता, द्वापर, पूजा, मख, अरु जोग। जो गति होय सो कलि हरी, 'नाम' ते पावहिं लोग ॥" "रामनाम जपु जिय सदा सानुराग रे। .. कलि न विराग जोग जाग तप त्याग रे॥" चौपाई। "रामहि केवल प्रेम पियारा । जानि लेड्ड जे जाननिहारा ॥". "मिलहिं न रघुपति विनुअनुरागा। किये योग जपान विरागा॥" "कालधर्म नहिं व्यापहि तेहीं। रघुपतिचरणनीति अति जेहीं ।।" और युगों से कलियुग में, कमलनयन श्रीहरि ने जीवों पर विशेष करुणा की है। (४१)श्रीलीलानुकरण भक्तजी। (२४१) टीका । कवित्त । (६०२) नीलाचल धाम तहाँ लीला अनुकर्न भयो, नरसिंह रूप धरि,