पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४२०

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ma inIME HanumanentMI- Aundhruari 4-4-fadalandM भक्तिसुधास्वाद तिलक । वाईजी डरौं, और बताई हुई रीति भाँति से खिचड़ी की, तथा सदाचार- अनुकूल उसको अर्पण किया, इस कारण बड़ा विलम्ब और अतिकाल हुधा ही॥

  • यहाँ पंडों ने जो श्रीजगनाथजी के मन्दिर के पट खोले तो श्रीमुख

में खिचड़ी लगी हुई दरशन पाए। क्योंकि अवर होने के कारण शीघ्रता से प्रभु विना श्रीमुख धोलाए ही वाईजी के यहाँ से चले आए। (२४७) टीका | कवित्त । (५९६) पूछी “प्रभु ! भयो कहा ? कहिये प्रगट खोलि, बोलिहू न आवै मैं, देखि नई रीति हैं"। "करमा सुनाम एक खिचरी खवाव मोहिं, मैं हूँ नित पाऊँ जाइ, जानि साँची प्रीति है ॥ गयो मेरो सन्त, रीति भाँति सो सिखाइ प्रायो, मतं मो अनन्त चिन जाने यो अनीति है"। कही वही साधु सों "जु! सौधि भावी वही बात", जाइक सिखाई. हिय श्राई. बड़ी भीति है ॥१६७॥ (४३२) __ वात्तिक तिलक। पंडों ने स्तुति विनय करके पूछा कि “प्रभो ! हम सबके मुँह से भय के मारे बात नहीं कहते बनती है, श्राज यह नई रीति देखने में प्रारही है, वार्ता क्या है ? सो कृपाकर खोलके प्रगट बता दीजिये ॥" श्राज्ञा हुई कि “करमा नामक एक बाई है, सो नित्य ही मुझको खिचड़ी खिलाती है, मैं भी उसकी सच्ची प्रीति लखके नित्य जाके पा आया करता हूँ। उसके यहाँ कल एक मेरे सन्त गए सो वे उसको सदाचार रीति भाँति सिखा भाए हैं, इसीसे विलम्ब हुधा सो त्वरा (जल्दी से) मैं विना मुख धुलाए हुए ही चला पाया हूँ, वह साधु यह नहीं जानते कि मेरी अर्चापूजा की रीति इदमित्थं नहीं वरंच नेमियों तथा प्रेमियों के पथ इतने विविध प्रकार के हैं कि जिनका अन्त कोई नहीं पा १ "मत मो अनन्त'मेरे प्रेमियों तथा भक्तों के भजनसेवा के मत और मार्ग अनेक तथा अनन्त है. इदमित्य नही । २ "साधि आवो वही बात" उसी बातको ठीक-ठीक कर आयो॥ .