पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४२८

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४०९ d neuremeHI- rammarliamMINMMAsantaramansamine A RH भक्तिसुधास्वाद तिलक। , - चौपाई। “परम रंक जनु पारस पावा । अन्धहि लोचन लाभ सुहावा ॥" सासु पति आदि सब यह भक्तिप्रभाव देखके दंग हो गये। संसार के व्यर्थ विवाद से सबका मन हटा, पछताने लगे कि "श्रीहरिभक्ति विन जन्म गये, कुछ सँभाला नहीं, हमारे भाग जागे कि ऐसी वधू घर में विराजी ।। निदान, इसने घर भर को भगवद्भक्त बना दिया। भगवन्त तथा सन्तों की सेवा करके वे सब भवपार हो गए। ___ "श्रीसिलपिल्ले" नाम भगवत् का किस वेद में किस नामावली वा "सहस्रनाम” में है ? उनका किस गंडकी नदी से प्रादुर्भाव हुआ था ? और क्या चिह्नचक्र उनमें थे वे कब श्रीनारदपंचरात्र-रीति इत्यादि से संस्कृत हुए थे? पर शुद्ध अन्तःकरण के सत्य प्रेम ही ने यह चमत्कार दिखाया । तब, वस्तुतः श्रीशालग्रामजी पर नेम प्रेम से जो श्रीतुलसीदल चढ़ाते हैं, अर्चा मूर्ति की विधिवत् सप्रेम पूजा करते हैं, उनके भाग्य का कहना ही क्या है ? ॥ (४७।४८) भक्तों के हित जिन्होंने सतों को विष दिया वे दो बाई। (२५५) टीका ! कवित्त। (५८८) भक्तन के हित सुत विष दियो उभै बाई कथा सरसाई, बात खोलिकै बताइये । भयो एक भूप ताके भक्त हूँ अनेक आवे, प्रायो, भक्तभूप, तासौं लगन लगाइये ॥ तिनहीं चलत ऐ चलन न देत राजा, वितयो वरष मास कहै “भोर जाइयें । गई आस टूदि, तन छूटिवे की रीति भई, लई बात पूछि रानी, सबै लै जना- इथे ॥ २०५॥ (४२४) १ वताइये"-दताई जाती है । २"भक्तभूप"=सन्तशिरोमणि, भक्तराज । ३ "लगन लगाइय"-प्रेम लगन लगाया था।