पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४४

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गीत । भक्तिसुधास्वाद तिलक । चौपाई। छिन छिनु पिय पदकमल विलोकी । रहिही मुदित दिवस जिमिकोकी ॥ "को न विकी विनु मोल सखी ! लखि जानकीनाथ की सुन्दरताई ॥" दो० "जेहि के हिय सर” इत्यादि “तुलसी जनकसुता विनु &C “सखि, रघुनाथ रूपनिहारु।" "सखि रघुवीर मुखछवि देखु” इत्यादि ॥ आली से राधाजी के रुचिर हिंडोलना झूलन जैए। इत्यादि ॥ "कोशलपुरी सुहावनि श्रीसरयू के तीर" इत्यादि ॥ सर्वया। "सोहहिं स्वामिनि सीय सुसंग, सहेली सवै अलबेली नवेली; . गौरी, गिरा कहिये निज भागे गवेली लग रति मानहुँ चेली। सारी सबै जरतारी किनारिन की पहिरे तन रंग रंगेली; पीरी, हरी, रसरंग सखी, कुसुमी, सित, ऊदी थी नीली रमेली ॥ ऐसी “सखी" चहुँ ओर लसे, सिय मध्य कृपारससागर बोरी; दै सब को मुदपुंज विलोकहिं मंजुल कंज विलोचन कोरी। को बस्नै छवि सुन्दर राजकिशोरी की, जो तिहुँ लोक अजोरी; जासुकटाक्ष विलास पिया चित को, रसरंग सखी लिए चोरी।।" १ श्री कथा श्रवण =उपटन २ अभिमान =मैल ३ श्रद्धा फुलेल ४ मनन सुनीर ५दया अंगुबाइब ६ नवनि वसन ७पन =सोंधो ८ भगवन्नाम =श्राभरण ६ हरि साधुसेवा =कर्णफूल १० मानसी -मुनथ १३ सुसंग =अंजन १२ चाह -बीरी