पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४४५

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४२६ -- -+ + + + + + + ++ + + + ++ + + + + + + + + + + + + + + + ++ ++ + श्रीभक्तमाल सटीका और गौण कारण लोभ कि जिसके वश भूषण लेलेने के लिये उस बालक को उसने जी से मारकर धूल में गाड़ दिया। और फिर मन ही मन में पछताता हुया घर में चला आया ॥ (२७१) टीका | कवित्त । (५७२) देखै महतारी मग, वेटा कहाँ पग रह्यो ? बीते चारि जाम, तऊ धाम मैं न भायो है । फेरी पुर डौंड़ी, ताके संग संत, आप, लौड़ी कहो यों पुकारि “सुत कौने विरमायो है ? वेगिदै वताय दीजे आभरन दिये लीजै," कही सों संन्यासी एही माखो, मन लायो है । दहलै दिखाय देह, वोल्यो “याको गहि लेह, याही ने हमारो पुत्र हत्यो, नीके पायो है ॥ २२० ॥ (४०६) वात्तिक तिलक। उस लड़के की माता उसके श्राने का पन्थ देख रही थी सोचती थी कि “वेटा कहाँ अटक रहा " चार पहर बीत गये पर अभी तक घर नहीं पाया ! साँझ समय वह महाजन उस सन्त और लौंडी इत्यादि को साथ लिये ग्राम भर में यह पुकरवाता हुआ डौंडी पिरवाने खगा कि "पुत्र को किसने अँटका रक्खा है ? बता दे, बतानेवाले को मैं उस लड़के के सब भूषण दे दूंगा॥" चौपाई। "सदाप्रती भूपति पहँ जाई । नृपसों कहि डौंडी पिटवाई ॥" पुकार सुनकर एक संन्यासी कि जिसने, उस लड़के को मारके धूल में छुपाते देखा था, सो आके वोला कि "मन में लोभ लाके इसी वैरागी ने तुम्हारे पुत्र को वध किया है यह कहके जहाँ मृतक शरीर था वहाँ उनको ले जाके दिखा दिया ॥ तव वैश्य भक्तजी ने अपने साथ के लोगों से कहा कि इस संन्यासी को पकड़ ले चलो, इसीने मेरे लड़के को मार डाला है, भला भया कि यह मिल गया" परंतु मन में तो क्षमा दया धैर्य को सँभाला ॥ १“कहाँ पम रह्यौ ?"=किसके प्रेम मे अरुझ रहा ?