पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४५२

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. . . . MME .. . . . . . .... -mta + mdrama - . भक्तिसुधास्वाद तिलक । उपवन के समीप सर (कुण्ड) के तीर समाज सहित जाके, भोजन कर, सभा गोष्ठी (गोठ) की । वहाँ राना ने प्रथम अपना खड्ग कोश से खींचकर सबको दिलाया। (२७८) टीका । कवित्त । (५६५) क्रमसौं निहारि, कही भुवन "विचार कहा?" कही चाहै 'दारे मुख निकसत 'सार' है । कादिकै दिखाई, मानौं विजुरी चमचमाई आई मन माँझ बोल्यो “याको मारो भार है" ॥ भक्त कर जोरिक बचायौ “अजू । मारिये क्यों ? कही बात झूठ नहीं, करी करतार है"। "पहा दूना-दून पावौ, प्रावो मत मुजरा कौं, मैं ही घर पाऊँ, होय मोय मेरो निस्तार है ॥ २२६ ॥ (४०३) वात्तिक तिलक । राजा ने पहिले अपना खड्ग दिखाके फिर क्रमसे सब वीरसामन्तों के खडूग, कोशों (मियानों) में से खिंचवाके, देखे और कहा कि "भुवनजी ! क्या विचार करते हो? तुम भी तो दिखाओ।" तब भुवनजी खड्ग को कर में लेकर कहा ही चाहते थे कि "मैं क्या दिखाऊँ, मेरा खङ्ग तो दार का है, परन्तु सार का कर देनेवाले प्रभु ने दार' शब्द के स्थानपर मुखसे 'सार' कहला दिया, और साथ ही ज्योंही चौहानजी ने कृपाण खींचकर दिखाया, वही (तलवार) बिजली सी चमचमाने लगी कि राना की आँखों में चकचौंधसा हो आया। देखकर राना फड़क उठा और विचार के अपने वीरों से बोला कि “यह मिथ्यावादी पिशुन भूमि का भार है, इसको मार डालो॥" श्रीभुवनजी श्रीसीतारामभक्त तो थे ही, उस शत्रता करनेवाले पर भी दया कर उसके प्राण बचाने के लिये हाथ जोड़कर राना से आपने कहा कि “महाराज ! इसको क्यों मारते हैं ? इसने मिथ्या नहीं कही क्योंकि मैंने एक दिन आपके संग एक गर्मिषी मृगी को मारा, उसका १"दार"=दार, काष्ठ, लकड़ी।