पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४६६

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M + - a ugam DHA14 4 - - + ++ m -04- - भक्तिसुधास्वाद तिलक। ४४७] इनको धनुषवाणादिक हथियार लिये देख, डर के मारे सब कुछ ' उतार दिये, पर केवल एक छल्लामात्र साहकारिनि वा साहूकार की अंगुली में रह गया । वह भी आपने अंगुली मरोड़कर छीन ली। सुकुमारी बोली कि “हा निगुड़ा तू बड़ा ही निटर है।" आपने उत्तर दिया कि "मुझे इसका छोड़ना कैसे अच्छा लग सकता है ? ' क्योंकि इस छल्ले में कई संतों का भोजन हो सकता है।" धन ले, । दोनों को वहीं बाट में छोड़, आप साधुओं के भोजन की चिन्ता में अपने घर की ओर लपके, थोड़ी ही दूर आये थे कि प्रगट हो । भगवान ने सुन्दर अनूप युगल मूर्ति से भक्तजी को दर्शन दिये। श्रीनिष्किञ्चनजी ने साष्टांग दण्डवत् कर वह सब भूषणादि श्री- दम्पति के कमलचरणों के सामने रखकर निवेदन किया कि “सार। इसमें जो २ अनूठे २ गहने हैं सो आप दोनों के ही योग्य हैं, कृपाकर पहिनिये । और शेष को यह दास घर ले जाकर सन्तो को खिला देगा, साधु लोग बाट जोहते होंगे।" प्रभु ने आपको "भक्तभूप!" कहके बाती से लगा लिया और वह सब धन भक्तभूपजी को ही दे, श्राप युगल अखण्डैक नित्य किशोरमूर्ति अन्तद्धान होगये ॥ श्रीभक्तभूपजी की जय । साँचेमन मीत सकार की जय ॥ दो. “तीन टूक कोपीन के, अरु भाजी बिन नौन । तुलसी, रघुपति उर वसे, इन्द्र बापुरो कौन ? ॥" (६०) श्रीसाक्षीगोपालजी के भक्त। (२९१) टीका । कवित्त ! (५५२) "गौड़" देशवासी उमे विन, ताकी कथा सुनौ, एक वैश बृद्ध जाति बृद्ध, छोटो संग है । और और ठौर फिरि आए फिरि आए "बन,” तन भयो दुखी, कीनी टहल अभंग है ।। रीझो बड़ोदिज "निज सुता तोको दई," "अहो रहो नहीं चाह मेरे,” लाई विनै रङ्ग है। साली दै गोपाल, "अब बात प्रतिपाल करो टरो कुल, ग्राम, भाम पूछन्यो सो प्रसंग है ॥ २३८ । (३६१)