पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४६७

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श्रीभक्तमाल सटीक। वात्तिक तिलक । गौड़ देश (उड़ीसा) के वासी दो ब्राह्मण, तिनकी कथा सुनिये एक बढ़ा, जाति का कुलीन, और दूसरा युवा सामान्य कुलवाला, दोनों साथ साथ तीर्थयात्रा को चले थे। और और ठौर फिरके, फिर श्रीवृन्दावन में जब आये तब कुलीन वृद्ध ब्राह्मण दुखी हुए। छोटे विप्रजी ने (जो साधु सुभाव तो थे ही) दुखी बूढ़े की अभंग सेवा की, अर्थात् दिनरात रहल में भली भाँति तत्पर रहे। अरोग होने पर बूढ़े ब्राह्मण अति प्रसन्न हुए और श्रीयुवा ब्राह्मणजी से बोले कि "है विष ! मैंने तुमको अपनी लड़की दी॥" __ इन्होंने उत्तर दिया कि "ओह ! मुझे तो आपसे कुछ चाह नहीं थी।" वृद्धदेव के बड़े अाग्रह से श्रीगोपालजी को साक्षी रखकर इन्होंने विवाह स्वीकार कर लिया। जब घर आये, तब इन्होंने कहा कि “देवताजी | अब आप अपना वचन प्रतिपाल कीजिये।" स्त्री तथा कुल और ग्राम के लोगों ने बचन से टर (टल ) जाने को कहा और ( साथ ही ) सारा प्रसंग पूछा ॥ (२९२) टीका । कवित्त । (५५१) बोल्यो छोटो विप्रविप्र दीजिये कही जो वात, तिया सुत कहै "अहो सुता याके जोग है?”। द्विज कहै “नाही कैसे करौं ? मैं तो देन कही," कही कहो "भूलि भयो, विथा को प्रयोग है" ॥ भई सभा भारी, पूछन्यो “सारखी नर नारी?" "श्रीगोपाल बनवारी, और कौन तुच्छ लोग हैं"। लेवो न लिखाई जोपै साखी भरै आइ तोव्याहि बेटी दोजे, लीजै, करों सुख भोग है" ॥ २३६ ॥ (३६०) वातिक तिलक । छोटे विप्र जी बोले कि “आपने जो बात कही है सो शीघ्र (छिप) दीजिये।"स्त्री और पुत्र ने (पूरा प्रसंग सुनकर) कहा कि "क्या लड़की इसके योग्य है ?" बूढ़े विश्जी ने उत्तर दिया कि "मैं नहीं कैसे करूँ ? मैंने तो देने को अवश्य कहा है ।” तब सबने