पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४६८

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४४९ mantraam aarateMa4+ भक्तिसुधास्वाद तिलक । सिखाया कि कह दो कि "दुख समय की बात है, चूक हुई, भूल से कह दी गई होगी।" इसकी बड़ी भारी सभा हुई। सभा ने पूछा कि “कोई नर वा नारी साक्षी है ?" आपने कहा कि "और तुच्छ लोगों का क्या कहना, साक्षी तो स्वयं श्रीगोपाल वनमालीजी ही हैं।" बूढ़े की ओर से कहा गया कि “पत्र लिखा लीजै कि यदि गोपालजी शाके साखी भर देवें, तो वेटी आपके ही साथ व्याह दी • जायगी कन्या ले जाकर सुख भोग कीजियेगा ॥" (२९३) टीका । कवित्त । (५५०) आयो वृंदावन, वनवासी श्रीगोपालजू सों बोल्यो “चलो साखी देची लई है सिखाय"। बीते कैयौ याम तब वोले श्यामसुन्दरज "प्रतिमा न चलें" "तो वोले क्यों जू भायक" | "लागे जब संग, युग सेर मोग धरौ रंग, आधे आध पार्दै, चलों नूपुर वजायके । धुनि तेरे कान पर, पाछै जिनि दीठि कर, करै, रहौं वाहि ठोर कही मैं सुनायक" ॥ २४० ॥ (३८६) वात्तिक तिलक । - आप आके श्रीवृन्दावनवासी गोपालज से बोले कि "ठाकुरजी! पंचायत में मैंने पत्र लिखवा लिया है, कृपा करके चलिये साखी दीजिये” कई पहर व्यतीत हुए, न कुछ उत्तर मिला न श्रीविग्रजी ने कुछ भोजन किया, तब प्रसन्न होकर श्रीश्यामसुंदरजी ने कहा कि "प्रतिमा चलती नहीं है।" तो आपने पूछा कि “यदि प्रतिमा चलती नहीं तो कृपा करके वोलती क्योंकर है ? ॥” __ श्रीवनमालीजी ने प्रसन्न होकर कहा कि “जब संग चलूँ तो दो सेर भोग अर्पण किया करना। हम दोनों प्राधा आधा पाया करेंगे, चलते समय मेरे चरणों के नूपुर बजते चलेंगे और उनकी ध्वनि तुम्हारे कानों में पड़ा करेगी, जिससे तुम अपने साथ साथ मेरे चलने की प्रतीति करना । मैं सुनाके कहे देता हूँ कि “पीछे दृष्टि न डालना, जहाँ फिरके देखोगे वहाँ से मैं आगे न बढ़ेगा।"