पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४७४

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- -+ Pand-+ - - +-+- -+Mod e randu M - - - - भक्तिसुधास्वाद तिलक । ४५५ हुआ है। वैसा ही आश्चर्यजनक चरित्र उसके पीछे (कलियुग में) हुआ सो विदित है, सन्तों के सुनने योग्य है ॥ (१) श्रीजसूस्वामी के वैल ब्रजवासी चोर चुरा लाए, सकार ने कृपा करके वैसे ही चैल स्वामीजी को दिये जिनसे वर्ष भर आपने खेत जुतवाए। फिर चोरों ने आपको बैल फेर दिये। ____(२) श्रीनामदेवजी की नाई नन्ददासजी ने भी रामकृपा से मरी बछिया को जिला दिया। (३) श्रीअल्हजी के लिये आँब के वृक्ष नीचे को झुक आए, सों प्रसिद्ध ही है, जगत् में यह यश गाते हैं। (8) वारमुखी का मुकुट कृपाकर धारण कर लेने के लिये श्रीरङ्ग- नाथ कृपालुजी ने अपना सीस नवा दिया। १.श्रीजसूस्वामीजी, ३.श्रीअल्ह्जी , २. श्रीनन्ददासजी, ४. एक वारमुखीजी। हे साधुवृन्द। ये सव कथा सुनिये, द्वापर में वच्छहरणचरित्र के पश्चात् कलियुग में भी यह आश्चर्यजनक वृत्तान्त हुआ सो प्रसिद्ध (६२) श्रीजमूस्वामीजी। ( ३०० ) टीका । कवित्त । ( ५४३ ) "जसू" नाम स्वामी, गङ्गा जमुना के मध्य रह गहँ साधुसेवा, ताको खेती उपजावही। चोरी गए बैल ताकी इनकौं न सुधि कडू तैसे दिये श्याम, हल जुटै भन भावहीं ॥ आए ब्रजवासी पैंठ वृषभ निहारि कही "इन्हें कौन ल्यायो ?" घर जाय देखि आवहीं। ऐसे वार दोय चारि फिरेउ, न ठीक होत, पूछी, पुनि ल्याए आए, उन्हें पैन पावहीं ॥ २४६ ॥ (३८३) वात्तिक तिलक ! अन्तर्वेद में अर्थात् श्रीगङ्गायमुनाजी के वीचवाले प्रदेश में "श्रीजसूजी" नाम एक स्वामी रहते थे, आपने साधुसेवावृत्ति धारण