पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

Al n ner a-MAHAJi -THANI भक्तिसुधास्वाद तिलक । नहीं, उसको स्वयं श्रीरङ्गनाथ भगवान किस प्रकार से स्वीकार करेंगे ?" "तेरे हाथों से चढ़वाने तक हम सब यही ठहरेंगे, तू मुकुट बनवाव ।” इन्होंने घर की सम्पूर्ण सम्पत्ति लगाकर (कहते हैं कि तीन लाख के लागत का)एक जड़ाऊ मुकुद बड़ी श्रद्धा से बनवाया। वक्ष शृङ्गार से बनठन के थाल में मुकुट को लेकर गाती बजाती धूमधाम से चली। ये आज्ञा पाकर मन्दिर में निशंक चली आई परन्तु इस समय इनको मासिक धर्म हो गया, अति दुःखित लजित शंकित हो, ये पीछे हट अपने को धिक्कार दे, सजल नेत्र भूमि पर गिर पड़ी। दीनवत्सल अन्तर्यामी प्रेमरसिक भगवत् ने शीघ्र ही पुजारी को आज्ञा की कि “चारमुखी को सादर लिवालायो, वह अपने हाथों से मुकुट मुझे पहिरा जावै ।” पुजारियों ने इनको प्रभु के निकट पहुँचा दिया। उनके हाथ न पहुँचने पर श्रीदीनबन्धु कृपासिन्धु ने स्वयं अपना सीस इतना झुका दिया कि वड़भागिनी ने हाथ उठाकर बड़े ही अनुराग से श्रीसकार को मुकुट पहिना दिया। रिझवार की जय । आपके प्रेम का क्या कहना॥ छन्द। "मैं नारि अपावन, प्रभु जग पावन, करुणानिधि जनसुखदाई । राजीव विलोचन, भवभयमोचन, पाहि पाहि शरणहिं बाई ॥ बिनती प्रभु मोरी, मैं मति भोरी, नाथ ! न माँगौं बर आना। पदपद्मपरागा, रस अनुरागा, मम मन मधुप कर पाना ॥ दो० "वार बार बर माँगा, हरीष देहु श्रीरङ्ग । पद सरोज अनपाइनी, भक्ति, सदा सत्सङ्ग॥" (३०७) छप्पय । (५३६) और युगन ते कमलनैन, कलियुग बहुत कृपा करी ॥ बीच दिये रघुनाथ भक्त संग ठगिया लागे। निर्जन बन