पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४८१

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४६२ 44 +AAMA- श्रीभक्तमाल सटीक । मैं जाय दुष्ट कर्म कियो अभागे॥ बीच दियो सो कहाँ ? राम! कहि नारि पुकारी। आए सारंगपानि शोकसागर ते तारी॥ दुष्ट किये निर्जीव सब, दास संज्ञा धरी । और युगनतें कमलनैन कलियुग बहुत कृपा करी ॥५५॥(१५६) १ एक भक्त ब्राह्मण । २ इनकी धर्मपत्नी रामभक्ता ॥ (६६।६७) दम्पति (भक्तविप्र सपत्नीक) वात्तिक तिलक । दीनहित श्रीराजीवलोचन भवभयमोचन श्रीरामचन्द्रजी और युगों की अपेक्षा कलियुग में जीवों पर अधिकतर कृपा कर रहे हैं । दो भक्तों के साथ मार्ग में ठग लगे, “श्रीरघुनाथजी तुम्हारे हमारे बीच में है" ऐसा कहकर ठगों ने श्रीभक्तों का सन्देह निबटाया, परन्तु निर्जन वन में पहुँचते ही उन अभागे हत्यारों ने अति दुष्टता की कि पुरुष को मार डाला । भक्ता स्त्री ने कहा कि "जिन रामजी को दुष्टों ने बीच में बताया था वे अब कहाँ हैं ?" वहीं श्रीशार्ङ्गधर जनरक्षक रघुवीर . ने प्रगट हो दुष्टों को मार भक्त को जिलाया अपने जनों को शोकसमुद्र के पार किया श्रीरामजी सब युगों से कलि में अधिकतर कृपा करते आते हैं। (३८०) टीका । कवित्त । (५३५) बिन हरिभक्त करि गोनो चल्यो तिया संग, जाके दूनी रंग, ताकै बात लै जनाइयै । मग ठग मिले द्विज पूछ "अहो ! कहाँ जात ?" “जहाँ तुम्ह जात" या मैं मन न पत्याइयै ॥ पंथ को छुटाय, चाहे बन मैं लिवाय जाय, कहैं "अतिसूधो पैंडों" डर मैं न आइयै । बोले “वीच राम” तऊ हिये नेक धकधकी, कहै वह बाम “श्याम नाम कहाँ पाइ" ॥ २५३ ॥ (३७६)