पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४८२

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mantra- IPPERMANNA Premier+Meeterature भक्तिसुधास्वाद तिलक । वात्तिक तिलक। एक भक्त, जाति के ब्राह्मण, गौना कराके स्त्री को ले घर आते थे। पुरुष से खी का अनुराग दूना चढ़ा बढ़ा था । इनकी कथा सुनिये। मार्ग में ठग मिले, साथ चले। भक्त विमजी ने पूछा कि "तुम सब कहाँ जाते हो ?" ठगों ने उत्तर दिया कि "जहाँ तुम दोनों जाते हो।" इस उत्तर में ब्राह्मण भक्तजी को प्रतीति नहीं हुई क्योंकि ठग चाहते थे कि यथार्थ मार्ग को छुड़ाकर इन्हें वन को लिया जायँ, उन सबोंने वन मग को "वड़ा सीधा" बताया। ब्राह्मणजी के नहीं पतियाने पर दुष्टों ने श्रीरामजी को बीच में कहके इनका सन्देह घटाया, फिर भी आपके मन में कुछ कुछ धधकी थी ही। परन्तु आपकी स्त्री आपसे भी अधिकतर प्रीति प्रतीति रखती थी, भाग्यवती ने कहा कि "शंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि रामजी का नाम बीच में देते हैं, भला श्रीरामजी का नाम सहज में कहाँ मिलता है। (३०९) टीका । कवित्त । (५३४) चले लागि संग, अब रंग के कुरंग करो तिया पर रीझ भक्ति साँची इन जानी है। गए वन मध्य ठग लोभ लगि माखो विप्र लिप ले के चले वधू, अति बिलखानी है। देखे फिरि फिरि पाई, कहैं "कहा देखै ? माखों" तब तो उचाखो “देखौं वाही बीच पानी हैं आए राम प्यारे, सब दुष्ट मारि डारे, साधु पान दै उबारे, हित रीति यों बखानी है ॥२५४ ॥ (३७५) वात्तिक तिलक। ब्राह्मण देवता अपनी स्त्री की भक्ति प्रीति प्रतीति श्रीसीताराम- चरणों में देखकर उस पर बहुत रीझे और मन में विचारा कि "चाहे दुष्ट कुरंग करें चाहे रंग।" वन के ही मग से सब साथ साथ चले। वन के बीच में जाके अभागे लोभी दुष्टों ने कुरंग किया, विम को मारडाला। ब्राह्मणी को बड़ी त्वरा से लिवा ले चले । ब्राह्मणी अतिशय विलाप करती और पुनः पुनः पीछे फिर फिर देखती जाती थी।