पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४८३

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44. 4-04 -0nbAMu+and + arihani ४६४ श्रीभक्तमाल सटीक । दुष्ट बोले कि “तूने देखा ही है कि तेरे पति को हमने मार डाला, तो अब तू फिर फिर देखती किसको है ?" इस देवी ने उत्तर दिया कि "उन प्राणनाथ के थाने की प्रतीक्षा कर रही हूँ कि जिनका नाम तुम सवोंने लिया था कि "हमारे तुम्हारे बीच में हैं" "राम" कह पुकारा॥ अभागों ने कहा "चल छहरी । ये सब कहने की ही बात भर थी।" इतने ही में प्राणनाथ श्रीरघुनाथ तथा लाडिले लाज लषनजी धनुष बाण कृपाण लगाए घोड़ों पर चढ़े देखने में आए । प्रभु ने दुष्टों का वध कर मृतक साधु ब्राह्मण को जिला लिया,यों दर्शन दे भक्त दम्पति को अत्यन्त सुखी किया, इनको इनके घर तक पहुँचा दिया। प्रभु की भक्तवत्सलत. यो वखानी गई है। (३१०) छप्पय । (५३३) एक सूप भागौत की कथा सुनत हरि होय रति॥ तिलक दास धरि कोइ, तारि गुरु गोबिंद जाने। षट- दशनी * अभाव सर्वथा घट करि मानै । भाँड़ भक्त को भेष हॉसि-हित मँड़-कुट ल्याये । नरपति कै दृढ़ नेम ताहिये पाँव धुवाये॥ भाँड़ भेष गादो गयो दरस परस उपजी भगति । एक भूप भागौत की कथा सुनत हरि होय रति ॥५६॥(१५८) (६८) एक भेषनिष्ठ राजा। वात्तिक तिलक । एक भागवत (भगवतभक्त) नृपति की कथा की ऐसी महिमा

  • वर्ग-(१) ब्राह्मण (२) क्षत्री (३) वैश्य (४) शूद्र, आश्रम- (१) ब्रह्मचारी (२)

गहस्थ (३) बानप्रस्थ (४) सन्यासी, षड्दर्शनी (१) उपनिषद् (२) न्याय (३) कर्मकाण्ड (४) तत्त्वविवेचन (५) योग और (६) स्मृतियाँ, छ शास्त्र-श्लोक १ वेदान्त, २ तर्क, ३ मीमासा, ४ साख्य, ५ पातञ्जल तथा । धर्म-शासनमित्येतत् प्राह शास्त्राणि षड्बुधा. ॥१॥