पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४८६

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+ tme- angrahting+ INE + + - +- + - +- भक्तिसुधास्वाद तिलक । ४६७ इसकी भक्ता रानी अपने पति पर अति रीझी और हर्ष से उसने प्रभात होते ही प्राणपति पर बहुत सा धन न्यवछावर किया। राजर्षि ने अपनी रानीजी से इस धूमधाम और प्रहर्ष का कारण पूछा। रानी ने अपने हर्ष का विषय विस्तारपूर्वक कह सुनाया। राजा को भारी सोच हुआ और इन्होंने अपनी रानी से कहा कि “खेद की बात है कि आज मेरी छन्तरंग भक्ति जाती रही ॥" (३१३) टीका । कवित्त । (५३०) तिया हरिभक्त कहै "पति पै न भक्त पायों!" रहै मुरझायो, मन सोच बढ्यो भारी है। मरम न जान्यो निशि सोवत पिछान्यो, भाव बिरह प्रभाव नाम निकस्यो विहारी हैं | सुनत ही सनी प्रेम- सागर समानी भोर सम्पति लुटाई, मानो नृपति जियारी है। देखि उत्साह भूप पूछचो, सो निबाह कहो, रह्यो तन ठौर, नाम जीव यौँ बिचारी है ।। २५६ ॥ (३७३) वात्तिक तिलक । एक अन्तनिष्ठ भक्तराजर्षिजी की स्त्री हरिभक्का थी, परन्तु उसको इस बात का बड़ा सोच बना रहता था कि “मैंने पति हरिभक्त भगवन्नामा- -नुरागी नहीं पाया।" इसी सोच से उसका मन मुझीया रहा करता था। रानी राजर्षि के गुप्त भाव का मर्म नहीं जानती थी, एक रात स्वप्न में भाव तथा विरह के प्रभाव से राजा के मुख से श्रीबिहारीजी के नाम का उच्चारण हुथा। तब रानीने परम भागवत को पहिचाना और जाना कि महाराज स्मरण ध्यान मानो गुप्त रखते हैं।' हरिनाम को श्रवण करते ही रानी प्रेमसिन्धु में मग्न हो अपने पति पर अत्यन्त रीझ गई । भोर होते बहुत अन्न वन और बहुत धन उस पर न्यवछावर कर लुटाने लगी, हर्ष से फूली न समाती थी, मानो राजा ने नया जन्म पाया है। ___ राजर्षि ने यह उत्साह धूमधाम देखकर इस सुख का कारण पूछा, गनी ने स्पष्ट रीति से सब कुछ कह सुनाया। सुनते ही राजा सोच से ठठक गया कि जैसे ही नाम मुँह से बाहर निकला, गुप्त