पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४८८

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-94 . H - OMH- 00mm ++MI+ भक्तिसुधास्वाद तिलक। ४६९ जैहों"। आचारज"इक बात तोहि आये ते काहिहाँ ॥" स्वामी रह्यो समाय दास दरसन को आयो। गुरु की गिरा विश्वास फेरि सब घर मैं ल्यायो ॥ शिषपन साँचों करन को, बिभु सबै सुनत सोई कह्यो। गुरु गदित बचन शिष सत्य अति, दृढ़ प्रतीति गादो गह्यो ॥५८॥ (१५६) (७१।७२) गुरु शिष्य। वात्तिक तिलक। एक शिष्य ने अपने गुरु भगवान के वचन को अति सत्य मान कर उसमें परमपूर्ण प्रतीति की। श्रीगुरुजी की प्राज्ञा लेकर शिष्यजी एक काम को चले, इनके गुरु भगवान ने आज्ञा की कि "अच्छा जाओ, जब तुम लौटकर आयोगे, तब तुमसे एक बात कहूँगा।" ___ जब उस कार्य से निवृत्त होकर लौट के शिष्यजी श्रीगुरुदर्शन को आए तो देखा कि प्राचार्य के मृतक शरीर को लोग लिये जाते हैं. तब शिष्यजी यह कहकर कि “महाराजजी ने मुझे कुछ कहने की प्रतिज्ञा की है, श्रीवचन कदापि अन्यथा नहीं।" शव के साथ सबको घर फेर ही लाए॥ प्रतीति साँची करने के लिये श्रीसकार की कृपा से गुरु भगवान् जी उठे और विश्वास-श्रद्धा-पूर्ण शिष्य से अपने संकल्पानुसार वचन कहे ही। प्रतीति विश्वास इसको कहते हैं । इसी से श्रीप्रिया- दासजी महाराज ने कहा है कि "प्रीति परतीति रीति, मेरी मति (३१६) टीका । कवित्त । (५२७) बड़ो गुरुनिष्ठ कछु घटी साधु इष्ट जाने स्वामी सन्त पूज्य माने कैसे समझाइयें । नित्यहि बिचारे पुनि टरै पै उचारे नाहिं चल्यो जब रामती को कही फिरी आइयें ॥ सपथ दिवाई न जराइवे कों