पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४९८

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४७९ A-MAILHin- APRIMAMAnt-rammeHIMIRPremitraari-to-mari-MHAMI- भक्तिसुधास्वाद तिलक। बार्तिक तिलक । भाली रानी ने, अपनी राजधानी चित्तौर जाके वहाँ से श्रीरदासजी को विनय कर, सादर बुला भेजा कि "जैसा आपने मेरा प्रतिपाल किया है वैसे ही तनक यहाँ आके भी प्रतिपाल कीजिये।" श्रीरदासजी कृपा करके वहाँ पधारे, भानन्द से रानी ने बहुत धन वन श्रीगुरु भगवान पर न्यवछावर किये ॥ ब्राह्मण लोग भी जो गए उनको सीधा देकर निवाया क्योंकि उन्होंने श्रीरदासजी के भंडारे मैं पूड़ी मिठाई भी नहीं खाना चाहा। जब ब्राह्मणा रसोई भोजन करने लगे, तो अपने प्रति दो दो विप्र के बीच श्रीरदासजी को बैठे पाया। यह प्रभाव देख उनकी आँखें खुली, दीन हो गिड़गिड़ाने लगे उनमें से बहुत विप्र आपके शिष्य भी हुए। सबकी प्रतीति दृढ़ाने के निमित्त श्रीरदासजी ने अपने पूर्वजन्म की कथा कही, तथा शरीर की त्वचा न्यारी कर स्वर्ण यज्ञोपवीत सवों को दिखाया॥ कठोते में श्रीगंगीजी आपके घर आई और उसी में से जड़ाऊ कङ्कण आपने दिये॥ लाखों को भगवत् सन्मुख करके आप परमधाम को गए। स्वामी अनन्त श्रीरामानन्दजी की कृपा की और श्रीरदासजी की जय ॥ (७४) श्री६ कबीरजी। ( ३२७ ) छप्पय । ( ५१६ ) कबीर कानि राखी नहीं वर्णाश्रम षटदरसनी॥ भक्ति बिमुख जो धर्म सो अधरम करि गायो।जोग जग्य व्रत दान, भजन बिनु तुच्छ दिखोयो॥ हिन्दू तुरक प्रमान “रमैनी, शबदी, साखी"। पक्षपात नहिं वचन, सबही के हित की भाखी॥आरूढ दसा कै जगत पर, मुख देखी नाहिन भनी । कबीर कानि राखी नहीं वर्णाश्रम षटदरसनी ॥६०॥ (१५४).