पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५०१

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8 4 ....M4494 . 4 . 4 . pug-41. 4-1 ..मन+ H.DAW . . . ४८२ श्रीभक्तमाल सटीक । काऊ पूछे तुम नाम ले उचारियै ॥ “ल्यावो न पकरि वाको कब हम शिष्य कियो"? ल्याये करि परदा में पूछी, कहि डारियै । राम नाम मंत्र यही लिख्यो सब तंत्रनि में खोलि पट मिले साँचौ मत उर धारिये ॥२६६॥ (३६०) वात्तिक तिलक । श्रीकवीरजी ने वही बात की अर्थात् अपने शरीर में भागवत संस्कार नाम ऊर्ध्वपुण्ड, तुलसी की कंठीमाला, इत्यादि धारण किये उसी महामन्त्र का जप करने लगे यह सब देख, बड़ा उत्पात मान आपकी माता कहलानेवाली बहुत चिल्लाने लगी, श्रीस्वामीजी के पास भी वह चिल्लाहट पहुँची, किसी समीपी ने कहा कि वह कहती है कि "कविरा से जो पूछती हूँ कि तूने यह सब कहाँ पाया, तुझे किसने बताया ? तो वह श्रीस्वामीजी ही को अपना गुरू बताता है।" यह सुन श्रीस्वामी- जी ने आज्ञा की कि "कबीर को पकड़ लावो, पूछा जाय कि मैंने उसको कब शिष्य किया है ?" लोग कबीरजी को ले आये । कपड़े का श्रोट करके श्रीस्वामीजी ने पूछा, कबीरजी ने उत्तर में सारा प्रसंग कह डाला और विनय किया कि “सव तंत्रों और ग्रंथों में राम ही नाम को महामंत्र परमजाप्य लिखा है।"(अनेक प्रमाण हैं)॥ "उस ब्राह्ममुहल में इस काशी धाम में श्रीगंगाजी की सीढ़ी पर आपने अपने चरणस्पर्शपूर्वक श्रीराम नाम कहा उस समय वहाँ कोई और नहीं था, केवल मैंने ही सुना, और फिर इस महामंत्र से परे उपदेश करने को और रह ही क्या गया ? इतनी बात सुन, अति प्रसन्न हो, श्रीस्वामीजी ने अोट हटाकर प्रत्यक्ष हो, कवीरजी को यह कहते हुए छाती से लगा लिया, कि "वत्स ! तेरा मत सच्चा पक्का है, यही नाम अपने उर में घरो। भगवतस्मरण और भागवत सेवा करो॥" १"परदा" as पट, व्यवधान, व्यवहित, आड़, ओट।