पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४८३ m Hamamurther -retuRMERImhelauna भक्तिसुधास्वाद तिलक । (३३०) टीका । कवित्त । (५१३) बीनछतानी वानौ, हिये राम मड़रानो, कहि कैसे के बखानों वह रीति कछु न्यारिौँ । उतनोई करें जामैं तन निरवाह होय, भोय गई और बात भक्ति लागी प्यारि ठाढ़े मंडी मॉम पट बेचन ले, जन कोऊ आयो मोकों देहु देह मेरी है उघारिय। लग्यौ देन आधौ फारिश्राधे सों न काम होत, दियो सब लियो जो यहै उर धारिय ।। २७० ॥ (३५६) बात्तिक तिलक । श्रीकबीरजी कपड़ा बुनने का उद्यम करते थे । यद्यपि बाह्य में ताना बाना करते तथापि अन्तःकरण में निरन्तर श्रीसीतारामरूप तथा श्रीसीताराम नाम मंत्र जपा करते थे जैसे आकाश में पक्षी मँडराते हैं । प्रेमाभक्ति भाव, प्रीति प्रतीति रीति, न्यारी ही वस्तु है वह वर्णन क्योंकर किया जावे। श्रीश्रीभक्ति महारानी की कृपा व्याप गई, वही प्यारी लगती थी, उद्यम तो केवल उतना ही करते थे कि जितने में शरीर तथा माता आदि का निर्वाह हो। ...एक दिन हाट में कपड़ा बेचने को खड़े थे, एक साधु ने माँगा कि "मैं वनरहित हूँ, मुझे दो” श्राप थान में से आधा फाड़ने लगे, उन्होंने कहा कि “श्राधे से पूरा नहीं पड़ने का।" आप बोले कि "अच्छा सब लो।" (३३१) टीका । कवित्त । (५१२) तिया सुत भात मग देखें भूखे, श्रावे कब ? दबि रहे हादनि मैं ल्या कहा धामों। साँचों भक्ति भाव जानि, निपट सुजान वे तो कृपा के निधान, गृह शोच पलो श्यामकों ॥ बालद ले धाये दिन तीनि यों विताये जब श्राये घर डारी दई, दई हो अरामकों । माता करै सोर कोऊ हाकिम मरोरि बाँधे डारी विन जानैं सुत लेत नहीं दामकों ॥ २७१ ॥ (३५८) "वीनै"=बुनै । १"हाकिम"= आज्ञा देनेवाला, राजकर्मचारी, राजकार्यनिर्वाहका, सासनकर्ता, न्यायकर्ता ।।